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तात्या टोपे का जीवन परिचय Tatya Tope Biography in Hindi

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8 Min Read
तात्या टोपे का जीवन परिचय Tatya Tope Biography in Hindi
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तात्या टोपे का जीवन परिचय Tatya Tope Biography in Hindi

Contents
तात्या टोपे का जीवन परिचय Tatya Tope Biography in Hindiजन्म और प्ररम्भिक जीवनशिक्षा-दीक्षा1857 की क्रांतिरानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जी का साथतात्या जी की मृत्युसम्मान

तात्या टोपे जी भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक सेना नायक थे। इन्होने भारत को अंग्रेजो से आजादी दिलाने में बहुत ही बड़ा हाथ है लेकिन तात्या टोपे जी ने अपनी जीवन का बहुमूल्य समय भारत की आजादी में लगा दीया जिससे भारत देश को अंगेजों से आज़ादी मिल सके।

जब वीर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई , नाना साहब पेशवा, राव साहब जैसे वीर लोग इस दुनिया से विदा लेकर चले गए वह लगभग एक साल तक विद्रोही की कमान सभालते रहे।

तात्या टोपे का जीवन परिचय Tatya Tope Biography in Hindi

जन्म और प्ररम्भिक जीवन

भारत देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम सेन के नायक तात्या टोपे जी का जन्म सन 1814 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के पास येवला नाम के एक गावं में हुआ था। तात्या टोपे जी का असली नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर था, लेकिन प्यार से इनको सब तात्या कह कर पुकारते थे।

इनका जन्म एक पंडित परिवार में हुआ था। तात्या जी अपने आठ भाई बहनों में सबसे बड़े थे। इनके पिता पाण्डुरंग राव भट्ट़, पेशवा बाजीराव द्वितीये के महल में काम करते थे।

जब तात्या जी 3 वर्ष के थे उस वक़्त अंगेजो के कारण पेशवा बाजीराव को पूना की राजगद्दी को छोड़कर बिठुर जाना पड़ा। इनके साथ तात्या के पिता भी तात्या को लेकर बिठुर चले आये।

शिक्षा-दीक्षा

तात्या टोपे जी की शिक्षा–दीक्षा पेशवा बाजीराव के पुत्रो और मनु बाई यानी झाँसी की रानी के साथ हुई। ये बचपन से ही तेज और साहसी थे। धीरे-धीरे समय बिता और तात्या टोपे जी युवा अवस्था में आ गए।

जब ये बड़े हुए तो पेशवा बाजीराव ने तात्या जी को अपना मुंशी बना लिया। पेशवा के पास काम करने से पहले तात्या जी बंगाल आर्मी की तोपखाने में काम करते थे। कुछ लोगो का मानना है कि इनके तोपखाने में काम करने से इनके नाम के आगे टोपे लगा दिया गया था।

लेकिन कुछ लोगो का मानना है कि जब बाजीराव के मुंशी के पद पर काम कर रहे थे तो इन्होने कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में पकड़ा था और उनसे खुश होकर पेशवा ने इनको एक रत्नजडित टोपी दी थी जिससे इनका नाम तात्या टोपे पड़ गया।

1857 की क्रांति

सन 1857 में तात्या जी की भूमिका –  सन 1851 में पेशवा बाजीराव का देहांत हो गया और उस वक़्त अंग्रेजो ने उनके पुत्र नाना साहब जी उनका उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया और और पेशवा को मिलने वाली पेंशन भी बंद कर दिया।

जिससे तात्या जी बहुत ही नाराज थे। सन 1857 में अंगेजो के खिलाफ जंग प्रारंभ हुई, इसमें तात्या टोपे जी ने बहुत ही वीरता और साहस का परिचय देते हुए अपना काम किया। बहुत मेहनत और दिक्कतों का सामना करते हुए इन लोगो ने कानपुर पर कब्ज़ा कर लिया।

तात्या जी ने 20000 सैनिको के साथ मिलकर अंगेजो को कानपुर छोड़ने पर मजबूर कर दिया। जब तक तात्या जी नाना साहब के साथ थे इन्होने कभी अंग्रेजो से नही हारे लेकिन बाद में जब नाना जी और अंग्रेजो की कई युद्ध हुए और उनमे नाना साहब को हार मिली। अंत में नाना साहब जी ने कानपुर छोड़ दिया और अपने परिवार के साथ नेपाल चले गए।

तात्या ने अंगेजो से हांरने के बाद भी कभी हार नही मानी और उन्होंने खुद की एक सेना तैयार की और कानपुर में फिर से कब्ज़ा करने के लिए हमला करने वाले थे कि अंगेजो ने इन पर बिठुर में ही हमला कर दिया वहां इनकी हार हुई लेकिन ये वहां से भाग निकले और अंगेजो के हाथ नही लगे।

रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जी का साथ

रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जी बचपन के मित्र थे।  रानी लक्ष्मीबाई ने भी सन 1857 में विदेशियों के खिलाफ लड़ाई की और उस युद्ध में इनसे जुड़े कोई भी व्यक्ति चुप नही। कुछ समय पश्चात अंग्रेजो ने रानी लक्ष्मीबाई पर हमला कर दिया।

जब ये बात तात्या टोपे जी को पता चली तो उन्होंने उनकी मदद करने का फैसला किया। इन्होने अपनी सेना की मदत से रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजो से बचाया और उनको पराजित भी किया। वहाँ जीत मिलने के बाद रानी लक्ष्मीबाई टोपे जी के साथ कालपी चली गई।

वहां पर तात्या जी ने एक मजबूत सेना बनाई और राजा जयाजी राव के साथ रणनीति बनाई और और अंग्रेजो को हरा कर ग्वालियर के किले पर अधिकार पा लिया। इस हार से अंग्रेजो को धक्का लगा।

कुछ समय पश्चात सन 1858 में 18 जून को अंग्रेजो ने ग्वालियर पर फिर से हमला कर दिया और इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई की हार हुई इन्होने अपने आप को अंग्रेजो से बचाने के लिए खुद को आग लगा लिया और वही इनका स्वर्गवास हो गया।

तात्या जी की मृत्यु

तात्या टोपे जी मृत्यु कैसे हुए इस बात में कई मत है उनके से कुछ इतिहासकारों का मानना है की इनको फंसी दी गई थी और कुछ का मानना है कि इनको फंसी नही दी गई थी। कुछ लोगो का मानना है की जब तात्या जी परोंन के जंगल में थे तो नरवर राजा मान सिंह अंग्रेजो से मिल गए थे और तात्या जी को अंग्रेजो से पकडवा दिया और उनको बदले राजगद्दी मिल गई।

तात्या जी ने अंग्रेजो के नाक में दम कर रक्खा था और इसी वजह से वो इनको पकड़ना चाहते थे लेकिन पकड नही पा रहे थे। कहा जाता है की इनको फांसी की सजा सुने गई।

माना जाता है जब इनको फांसी देने जा रहे थे तो इन्होने खुद ही रस्सी को अपने गले में डाल लिया था। कुछ इतिहासकारो का मानना है कि ये कभी भी अंग्रेजो के हाथ नही लगे और इन्होने अपनी अंतिम साँस गुजरात में 1909 में ली।

सम्मान

इनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया था जिसमे इनकी फोटो बनाइ गई थी। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश में तात्या मेमोरियल पार्क भी बना हुआ है। जहाँ पर इनको मूर्ति लगाई गई है जिससे हम इनको आने वाले समय में भूल ना पाए।

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