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सप्तऋषि की कहानी (सप्तर्षि मंडल) Story of Saptarishi in Hindi (Ursa Major-Great Bear of Sky)

Moral Stories
7 Min Read
सप्तर्षि की कहानी (सप्तर्षि मंडल) Story of Saptarishi in Hindi (Ursa Major)
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सप्तऋषि की कहानी (सप्तर्षि मंडल) Story of Saptarishi in Hindi (Ursa Major-Great Bear of Sky)

Contents
सप्तऋषि की कहानी -सप्तर्षि मंडल Story of Saptarishi in Hindi (Ursa Major-Great Bear of Sky)आकाश में सप्तऋषि मंडल SAPTARISHI MANDAL IN SKY (URSA MAJOR)सप्तऋषि की कहानी STORY OF SAPTARISHI (कौन थे सप्तर्षि ?)1-  ऋषि वशिष्ठ2-  ऋषि विश्वामित्र3-  ऋषि शौनक4-  ऋषि वामदेव5-  ऋषि अत्रि6-  ऋषि भारद्वाज7-    ऋषि कण्वपूजा व महत्व IMPORTANCE OF SAPTARISHI

आप लोगों ने आकाश में चम्मच के आकर में कुछ तारे जरूर देखे होंगे। उन तारों को सप्तऋषि मंडल कहा जाता है। वेदों में तारों के बारे में वर्णन किया गया है। भारत के 7 महान संतों ऋषियों के नाम पर सप्त ऋषि मंडल का नामकरण हुआ है।

ये है- ऋषि वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि शौनक, ऋषि वामदेव, ऋषि अत्री, ऋषि भारद्वाज और  ऋषि कण्व। सप्त ऋषियों ने भगवान शिव के साथ मिलकर योग की खोज की थी।

सप्तऋषि की कहानी -सप्तर्षि मंडल Story of Saptarishi in Hindi (Ursa Major-Great Bear of Sky)

आकाश में सप्तऋषि मंडल SAPTARISHI MANDAL IN SKY (URSA MAJOR)

सप्तऋषि मंडल को रात्रि में उत्तरी गोलार्ध में देखा जा सकता है। ये तारे चौकोर और तिरछी रेखा में होते हैं, देखने में पतंग के आकार जैसे दिखते है। मिस्र के प्रख्यात ज्योतिर्विद क्लाडियस टॉलमी ने दूसरी शताब्दी में 48 तारा मंडलों की सूची बनाई थी। उसमें सप्त ऋषि तारामंडल शामिल था। इसका आकार देखने में बड़ा भालू की तरह लगता है इसलिए इसे “ग्रेट बेयर” (Great Bear) या “बिग बेयर” (Big Bear) कहा जाता जाता है।

सप्तऋषि तारामंडल को अंग्रेजी में “अरसा मेजर” (Ursa Major) कहते है। अमेरिका और कनाडा देशों में इसे “बिग डिप्पर” (यानि बड़ा चमचा) भी कहा जाता है। चीन में यह “पे-तेऊ” कहलाता है। ये 7 तारे ध्रुव तारा (Pole Star) का चक्कर 24 घंटे में लगाते हैं। सप्त ऋषि तारामंडल में एक गैलेक्सी भी पाई जाती हैं। सप्तर्षि मंडल शनि मंडल से एक लाख योजन ऊपर पर स्थित है।

सप्तऋषि की कहानी STORY OF SAPTARISHI (कौन थे सप्तर्षि ?)

1-  ऋषि वशिष्ठ

राजा दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। उन्होंने चारों राजकुमारों को राजा दशरथ से राक्षसों का वध करने के लिए मांगा था। यह वैदिक काल के प्रमुख ऋषि थे। उन्हें ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान हुआ था। एक बार ऋषि विश्वामित्र वशिष्ठ के आश्रम में आए।

उनका सत्कार उन्होंने कामधेनु गाय के द्वारा दिए गए भोजन, फल और दूध से किया। कामधेनु गाय को देखकर ऋषि विश्वामित्र लोभी बन गए। वे मन ही मन कामधेनु गाय को प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने वशिष्ठ से कामधेनु गाय मांगी पर उन्होंने मना कर दिया।

ऋषि वशिष्ठ को अपने लिए आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति के लिए कामधेनु गाय की बहुत आवश्यकता थी इसलिए उन्होंने गाय देने में असमर्थता जताई। फिर वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच कामधेनु गाय के लिए युद्ध हुआ था।

2-  ऋषि विश्वामित्र

यह वैदिक काल के प्रसिद्ध ऋषि थे। उनकी तपस्या मेनका ने भंग की थी। इन्होंने ही गायत्री मंत्र की रचना की है जो आज भी चमत्कारिक मंत्र माना जाता है। कामधेनु गाय के लिए विश्वामित्र का युद्ध ऋषि वशिष्ठ से हुआ था। ब्रह्मा जी ने ऋषि विश्वामित्र की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें ब्राह्मण की उपाधि प्रदान की थी।

3-  ऋषि शौनक

इन्होंने एक बड़े गुरुकुल की स्थापना की थी। जिसमें 10000 से अधिक विद्यार्थी पढ़ते थे। वो संस्कृत व्याकरण, ऋग्वेद प्रतिशाख्य, बृहद्देवता, चरणव्यूह तथा ऋग्वेद की 6 अनुक्रमणिकाओं के रचयिता ऋषि थे। वो कात्यायन और अश्वलायन के गुरु माने जाते है। उन्होने ऋग्वेद की बश्कला और शाकला शाखाओं का एकीकरण किया। विष्णुपुराण के अनुसार शौनक ग्रतसमद के पुत्र थे।

4-  ऋषि वामदेव

इन्होने संगीत की रचना की थी। यह गौतम ऋषि के पुत्र थे। इन्होने इंद्र से तत्वज्ञान पर चर्चा की थी। जब ये अपनी माता के गर्भ में थे तब इन्हें विगत 2 जन्मों का ज्ञान हो गया था। ऐसा उल्लेख किया जाता है कि ऋषि वामदेव सामान्य रूप से माता के गर्भ से पैदा नहीं होना चाहते थे। इसलिए इनका जन्म इनकी माता के पेट को फाड़कर हुआ था।

5-  ऋषि अत्रि

वैदिक काल के ऋषि थे। ये ब्रह्मा के पुत्र थे। इनकी पत्नी अनुसुइया थी। एक बार त्रिदेव (ब्रह्मा विष्णु महेश) अनुसूइया के आश्रम में गए थे। ऋषि अत्रि वहां पर नहीं थे। अनुसूइया ने त्रिदेव को बालक बना दिया था। उन्होंने इंद्र अग्नि और अन्य देवताओं को भजन लिखने की प्रेरणा दी थी। इनका ऋग्वेद में सबसे अधिक उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के पांचवे मंडल को अत्री मंडला कहा जाता है।

6-  ऋषि भारद्वाज

चरक संहिता के अनुसार ऋषि भारद्वाज ने आयुर्वेद का ज्ञान इंद्र से पाया था। वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद वे चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे। महर्षि भरद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद संहित, धनुर्वेद, राजनीतिशास्त्र, यंत्रसर्वस्व, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा आदि पर अनेक ग्रंथों के रचयिता हैं।

वो बृहस्पति के पुत्र थे। इनकी माता का नाम ममता था। इनका जन्म श्री राम के जन्म के पूर्व हुआ था। इन्होंने वेदों के कई मंत्रियों की रचना की है। भारद्वाज स्मृति भारद्वाज संगीता की रचना इन्होंने की है।

7-    ऋषि कण्व

वैदिक काल के प्रसिद्ध ऋषि थे। इन्होंने हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन पोषण किया था। सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर शृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है।

पूजा व महत्व IMPORTANCE OF SAPTARISHI

पंचमी वाले दिन सप्तर्षि की पूजा करनी चाहिए। सुबह स्नान कर घर की सफाई करनी चाहिए। सुरक्षित स्थान पर हल्दी कुमकुम रोली से चौकोर मंडल बनाकर उस पर सप्तर्षि की स्थापना करनी चाहिए। उसके बाद फूल, धूप, दीप, नैवेद इत्यादि से पूजन करके मंत्र पढ़ना चाहिए।

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