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Hindi Inspirational Stories - प्रेरणादायक कहानियां

रूपकुंड झील का रहस्य , इतिहास Roopkund Lake Uttarakhand in Hindi

Moral Stories
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रूपकुंड झील का रहस्य , इतिहास Roopkund Lake Uttarakhand in Hindi
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रूपकुंड झील का रहस्य , इतिहास Roopkund Lake Uttarakhand in Hindi

Contents
रूपकुंड झील का रहस्य , इतिहास Roopkund Lake Uttarakhand in Hindiइस रस्यम्यी झील की खोज और इतिहासपर्यटन स्थल के रूप में रूपकुंड झीलरूपकुंड झील की उत्पत्ति की पौराणिक कथारूपकुंड झील पंहुचने के मार्ग

रूपकुंड झील को “कंकाल झील” भी कहते हैं। यह उत्तराखंड राज्य में हिमालय पर्वत की चोटियों के बीच में 16499 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक वीरान जगह है और इसमें 500 से अधिक मानव कंकाल हैं। यह झील वर्ष के ज्यादातर समय बर्फ से ढकी रहती है। अब यह एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बन चुकी है।

रूपकुंड झील का रहस्य , इतिहास Roopkund Lake Uttarakhand in Hindi

इस रस्यम्यी झील की खोज और इतिहास

रूपकुंड झील की खोज रेंजर एचके माधवल ने 1942 में की थी। यह माना जाता है कि उन सभी 500 लोगों की मौत किसी भयंकर बीमारी या महामारी से हुई होगी। विद्वानों और वैज्ञानिकों का इस बारे में अगल-अगल मत है। मानव कंकाल मिलने के कारण यह सभी वैज्ञानिकों खोजकर्ताओं के लिए कौतूहल का विषय बनी हुई है।

कार्बन डेटिंग परीक्षण से पता चलता है कि यह मानव कंकाल 12वीं से 15 वीं सदी के बीच के हैं। झील में गहने, खोपड़ी, हड्डियां, अस्थियाँ, बालों की चुटिया, चमड़े के चप्पल व बटुआ, लड़की और मिटटी के बर्तन, शंख, अन्य आभूषण   और शरीर के ऊतक पाये गए हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार इतने सारे लोगों के मरने की घटना 850 ई० में हुई होगी।

कुछ विशेषज्ञ और साइंटिस्ट मानते हैं कि इन सभी लोगों की मौत चारों तरफ ऊंचे पहाड़ होने की वजह से किसी बीमारी से नहीं बल्कि ओलावृष्टि, भूस्खलन और हिमस्खलन की वजह से हुई थी। रूपकुंड झील नंदा देवी की तीर्थ यात्रा के मार्ग पर स्थित है। यहां पर हर 12 वर्षों में एक बार स्थानीय मेला लगता है।

पर्यटन स्थल के रूप में रूपकुंड झील

हिमालय की गोद में स्थित होने के कारण रूपकुंड की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। यह एक खूबसूरत और मनोहारी पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो गया है। वर्तमान में रूपकुंड झील दो हिमालय की चोटियों त्रिशूल और नंद घुंगटी की तलहटी में स्थित है। यह झील वर्ष के अधिकांश समय बर्फ से ढकी रहती है।

शुरू में यह माना जाता था कि यह कंकाल जापानी सैनिकों के थे जो दूसरे विश्व युद्ध में युद्ध लड़ रहे थे। लेकिन वैज्ञानिकों ने बाद में पता लगाया कि यह कंकाल श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के हैं जिनका कद छोटा था। शोध से पता चलता है कि मानव कंकालों के सिर में चोट लगी थी।

यह चोट संभावित रूप से क्रिकेट के साइज की गेंद के आकार वाले ओलो (बर्फ) के गोलों से लगी थी। गर्मी के मौसम में बर्फ के पिघलने पर यहां पर बहुत सारी मानव खोपड़ीयां और हड्डियां दिख जाती हैं। रूपकुंड झील को हमेशा से ही एक रहस्यमई झील माना जाता है। यहां पर पर्यटक और श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।

रूपकुंड झील की उत्पत्ति की पौराणिक कथा

नंदा देवी पार्वती का ही नाम है। ऐसा माना जाता है कि इस मार्ग से नंदा देवी (पार्वती) भगवान शिव के साथ जा रही थी। उन्हें प्यास लगी परंतु दूर दूर तक पहाड़ पर्वत होने के कारण पानी नहीं मिला। तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से धरती पर प्रहार करके इस झील को बनाया था। तब से इसका नाम रूपकुंड झील पड़ गया।

रूपकुंड झील पंहुचने के मार्ग

इस प्रसिद्ध झील में पंहुचने के लिये मुख्यत: निम्न मार्ग हैं –

  • कर्णप्रयाग से थराली, देवाल, वाण, गैरोलीपातल, वेदिनी बुग्याल, कैलोविनायक, रूपकुंड (लगभग 155 किमी)।
  • नन्दप्रयाग से घाट, सुतोल, वाण, वेदिनी बुग्याल, रूपकुंड।
  • ग्वालदम से देवाल, वाण, वेदिनी बुग्याल, रूपकुंड।

जून से सितंबर का समय रूपकुंड झील को देखने के लिए सही है। इस मौसम में यहाँ की बर्फ पिघली हुई होती है और पानी दिखाई देता है। उसके बाद वर्ष भर यह झील बर्फ से ढकी हुई होती है।

Featured Image Source – https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Roopkund,_Trishul,_Himalayas-1.jpg

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