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Hindi Inspirational Stories - प्रेरणादायक कहानियां

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Rameshwaram Jyotirlinga History Story in Hindi

Moral Stories
8 Min Read
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Rameshwaram Jyotirlinga History Story in Hindi
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रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Rameshwaram Jyotirlinga History Story in Hindi

Contents
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Rameshwaram Jyotirlinga History Story in Hindiकहानी 1कहानी 2

12 ज्योतर्लिंगों में से 11 वां ज्योतिर्लिंग रामेश्वर ज्योतिर्लिंग है। इसे श्री रामलिंगेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। यह मंदिर अपनी कलाकृति और शिल्पकला के लिए जाना जाता है। यह मंदिर काफी विशाल है।

रामेश्वरम में वार्षिकोत्सव होता है जिसमें भगवान शिव और माँ पार्वती की प्रतिमाओं की शोभा यात्रा सोने या चांदी के वाहनों पर निकाली जाती है। रामेश्वर ज्योतिर्लिंग को सुसज्जित किया जाता है।

उत्तराखंड से गंगोत्री का जल लाकर रामेश्वर ज्योतिर्लिंग को चढ़ाया जाता। है। इसका बड़ा ही महत्त्व है। शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता के अनुसार यह कथा उस समय की है जब रावण सीता जी का हरण कर लंका ले गया था। ‘

तब सभी देवी की खोज में निकले थे। श्री राम जी अपनी वानर सेना के साथ दक्षिण के समुद्र तट पर पहुंचे थे। वही तट पर स्वयं भगवान राम ने शिव जी का ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था। यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामेश्वरम में स्थित है। यह चार धामों में से एक है। आईये इस कथा को विस्तार से जानते हैं।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Rameshwaram Jyotirlinga History Story in Hindi

कहानी 1

जब श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान और वानर सेना के साथ समुद्र तट पर पहुंचे तब उन्होंने देखा कि लंका नगरी समुद्र के उस पार है। समुद्र से लंका की दूरी को कैसे तय किया जाए ऐसा  विचार करने लगे। यह उन सबके के लिए बहुत बड़ी समस्या थी क्योंकि उन्हें सीता जी को रावण की लंका से वापस लाना था। भगवान राम जी शिव जी की रोज पूजा किया करते थे लेकिन इस समस्या के कारण वे उस दिन शिव जी की पूजा करना भूल गए।

भगवान राम जी को यकायक प्यास लगी और उन्होंने जल मांगा। जल ग्रहण करने से पहले ही उन्हें याद आया कि उन्होंने आज शिव भगवान जी की पूजा नहीं की है, तब उन्होंने उसी स्थान पर भगवान शिव का पार्थिव शिवलिंग बनाया और सादर मन से पूजा – अर्चना करना शुरू कर दिया।

उन्होंने शिव भगवान जी से विनती की कि हे प्रभु ! मैं अत्यंत विपत्ति में हूँ , मेरी समस्या का समाधान कीजिये। लंका नगरी इस समुद्र के उस पार है, उसे हम सब कैसे पार करें। रावण ने सीता का हरण किया है, वह भी आपका भक्त है और आपके द्वारा मिले वरदान के कारण वह हमेशा गर्वित रहता है। कृपया आप मेरी परेशानी का हल करें।

तब वहां भगवान शिव जी प्रकट हुए और प्रसन्न मन से बोले कि तुम मेरे परम प्रिय भक्त हो, तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य होगा। तुम वर मांगो। तब राम जी बोले कि रावण से युद्ध के लिए मेरी जीत सुनिश्चित कीजिये और सदा के लिए लोगों के कल्याण के लिए यहाँ विराजमान हो जाईए। तब शिव जी ने उन्हें वर प्रदान किया और हमेशा के लिए वहीँ विराजमान हो गए।

कहानी 2

एक अन्य कथा भी प्रचलित है। जब श्री राम जी रावण का वध करके, सीता जी को वापस ला रहे थे तो उन्होंने समुद्र पार करके सबसे पहले गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया था। जब बड़े – बड़े ऋषि – महर्षि को पता चला कि श्री राम जी सीता के साथ यहाँ पधारे हैं तो वे सभी उनका आशीर्वाद लेने वहां पहुंचे।

तब ऋषियों ने श्री राम जी को बताया कि आपको ब्रह्म हत्या का श्राप लगा है क्योंकि आपने पुलस्त्य कुल का विनाश किया है। तब श्री राम जी ने कहा कि आप लोग ही इस समस्या का समाधान बताइये, जिससे में पाप मुक्त हो सकूँ। तब सब ऋषियों ने कहा कि प्रभु ! आप यहाँ एक शिवलिंग का निर्माण कीजिये और पूजा – अर्चना कीजिये। भगवान शिव जी को प्रसन्न कीजिये। इस प्रकार आप पाप मुक्त हो सकते हैं।

ऋषियों की बात सुनकर श्री राम जी ने हनुमान जी को आदेश दिया कि कैलाश पर्वत जाओ और एक लिंग लेकर आओ। आदेशानुसार हनुमान जी तुरंत कैलाश पर्वत पहुंचे। लेकिन उन्हें लिंग नहीं मिला।

उन्होंने वहीँ शिव भगवान की तपस्या करना शुरू कर दिया। हनुमान जी की इस तपस्या से शिव जी प्रसन्न हुए और प्रकट हो गए। इस प्रकार लिंग प्राप्त करके वे तुरंत गंधमादन पर्वत पहुँच गए। लेकिन हनुमान जी को बहुत देर हो चुकी थी।

वहां ऋषियों के द्वारा बताये गए मुहूर्त के अनुसार शिवलिंग की स्थापना करनी थी। तब सबने निर्णय किया कि खुद से शिवलिंग का निर्माण करके स्थापना की जाये और विधि – विधान से पूजन किया जाए। तब ऐसा ही हुआ।

पूजा के उपरान्त जब हनुमान जी आये और देखा कि स्थापना हो चुकी है तो उन्हें बहुत दुःख हुआ और वे श्री राम जी की चरणों में गिर गए। तब श्री राम जी ने शिवलिंग स्थापना की बात बताई कि मुहूर्त बीत न जाए इसीलिए लिंग स्थापना करवानी पड़ी।

लेकिन हनुमान जी तब भी संतुष्ट नहीं हुए। तब श्री राम जी ने कहा कि इस स्थापित लिंग को उखाड़ देते हैं और तुम्हारे द्वारा लाये हुए लिंग की पुनः स्थापना करते हैं। तब हनुमान जी अत्यंत प्रसन्न हुए। जैसे ही लिंग को उखाड़ने लगे तो वह लिंग नहीं उखड़ा।

वह कठोर हो चुका था। वह वज्र बन गया था। उस लिंग को उखाड़ने के लिए हनुमान जी ने सब प्रयत्न किये किन्तु वह तस से मस न हुआ। अंत में हनुमान जी 3 किलोमीटर की दूरी पर जाकर गिरे और बेहोश हो गए।

माता सीता स्नेह के कारण रोने लगी और तब हनुमान जी को होश आया और उन्होंने श्री राम जी की तरफ देखा तो परब्रह्म के दर्शन हुए। तब उन्होंने रोते हुए श्री राम जी से क्षमा मांगी। तब श्री राम जी ने उन्हें समझाया कि जिसके द्वारा यह शिवलिंग स्थापित है उसे इस दुनिया की कोई भी शक्ति नहीं उखाड़ सकती। तुमसे भूल हो गयी थी।

आगे ऐसी गलती कभी मत करना। अपने भक्त पर ऐसे दया – भाव दिखाते हुए उन्होंने हनुमान जी द्वारा लाये हुए शिवलिंग को भी वहीँ स्थापित कर दिया। तब हनुमान जी अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार राम जी के द्वारा स्थापित शिवलिंग का नाम रामेश्वर रखा गया और हनुमान जी के द्वारा लाये गए शिवलिंग का नाम हनुमदीश्वर रखा गया।

यहाँ आस – पास कई दर्शनीय स्थल हैं, साक्षी विनायक मंदिर, सीता कुंड, एकांत राम मंदिर, अम्मन देवी मंदिर, कोदण्डरामस्वामी और  विल्लूरणि कुंड आदि। जब तीर्थयात्री यहाँ दर्शन के लिए आते हैं तो इन अन्य  जगहों पर भी भ्रमण के लिए जाते हैं। वास्तव में यह स्थल ऐसा है, जहाँ शिवलिंग के दर्शन कर लेने मात्र से भक्तों के समस्त दुःख दूर हो जाते हैं और पाप मुक्त हो जाते हैं।

Image Source – By Ssriram mt [CC BY-SA 4.0 (https://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], from Wikimedia Commons

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