कुतुबुद्दीन ऐबक का इतिहास व तथ्य Qutubuddin Aibak Life History in Hindi
कुतुबुद्दीन ऐबक मध्यकालीन भारत में एक शासक थे। वह दिल्ली सल्तनत के पहले सुल्तान तथा गुलाम वंश के स्थापक भी थे। उन्होंने सिर्फ 4 साल ही अपना शासन चलाया।
कुतुबुद्दीन ऐबक का इतिहास व तथ्य Qutubuddin Aibak Life History in Hindi
कुतुबुद्दीन ऐबक एक अत्यधिक प्रतिभावान सैनिक थे। उनके जीवन इतिहास के अनुसार वह पहले एक दास के रूप में रहे फिर उसके बाद वह गौरी साम्राज्य के सुल्तान मुहम्मद गौरी के सेना संचालन एवं सैन्य अभियानों के सहायक बने और उसके बाद आखिर में दिल्ली के सुल्तान बनने का उनको मौका मिला।
वह तुर्किस्तान के रहने वाले थे। उन क्षेत्रों में उस दौरान दास प्रथा एवं व्यापार का बहुत चलन था। गुलाम एवं दासों की खरीद-फरोख्त काफी लाभदायक मानी जाती थी। गुलामों को उचित प्रकार से शिक्षित किया जाता था एवं प्रशिक्षित भी किया जाता था और फिर इसके बाद उन्हें राजा को बेच दिया जाता था।
यथावत कुतुबुद्दीन ऐबक बचपन में ही इस प्रथा से जूझे अथवा उन्हें भी एक व्यापारी को बेच दिया गया। व्यापारी ने उन्हें फिर पर्शिया के निशापुर के एक काज़ी को बेच दिया। उसी दौरान जब वह बालक अवस्था में थे उन्हें सेना का प्रशिक्षण दिया गया। काज़ी की मृत्यु के बाद काज़ी के बेटों ने कुतुब को फिर से बेच दिया और इस बार मुहम्मद गौरी नामक व्यक्ति ने उन्हें खरीदा।
गोरी ने क़ुतुब की ईमानदारी एवं बहादुरी देखकर उन्हें शाही अस्तबल का अध्यक्ष बना दिया और साथ ही साथ उन्हें सेना के संचालन का काम भी मिला। तराइन के युद्ध में उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को हराया और उसके बाद उन्हें भारतीय प्रदेशों के सूबेदार का ओहदा मिला।
वह दिल्ली एवं अन्य क्षेत्रों के उत्तरदाई बने। जैसे-जैसे गोरी का साम्राज्य बढ़ता गया उसी के साथ साथ क़ुतुब को भारत के मध्य हिस्से में शासन करने का अधिकार दिया गया। अफगानिस्तान में गोरी का काफी बड़ा फैला हुआ साम्राज्य था, इस बात से हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि वह एक मजबूत शक्तिशाली शासक था। उनके साम्राज्य के क्षेत्र थे- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत।
इन्हीं सब उपलब्धियों के कारण सन 1206 में कुतुब को दिल्ली के सुल्तान की पदवी दी गई थी। कुतुब ने कुवत उल इस्लाम मस्जिद और कुतुब मीनार का निर्माण कराया। यह दोनों इमारतें हिंदुस्तान की सबसे प्राचीन मुस्लिम धरोहर है, पर दुर्भाग्यवश इनका निर्माण वह पूरा ना कर सका फिर बाद में जाकर इस अधूरे निर्माण कार्य को इल्तुतमिश ने पूरा किया था।
कुतुब मीनार उन्होंने सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार की याद में बनवाया था। प्राचीन इतिहास के अनुसार कुतुब मीनार के निर्माण को कुतुब की जीत का प्रतीक मानते हैं। सन 1210 में एक हादसे के दौरान पोलो खेलते हुए उनकी मौत हुई।
उनकी मृत्यु घोड़े से गिरने की वजह से हुई थी। लाहौर में उन्हें दफनाया गया था इसके उपरांत उन्हीं के भतीजे जिनका नाम शमसुद्दीन इल्तुतमिश था, उनके उत्तराधिकारी बने और आगे जाकर उनके साम्राज्य को संभाला था । कुतुब भारत में तुर्क सल्तनत की स्थापना के लिए जाने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने भारत में इस्लामिक सांप्रदायिक राज्य की स्थापना की थी ।
तथ्य Facts
- कुतुबुद्दीन ने गौरी की मृत्यु के बाद अपने आप को लाहौर में एक स्वतंत्र शासक की तरह घोषित किया।
- कुतुबुद्दीन का राज्य अभिषेक 24 जून सन 1206 में लाहौर में हुआ था ।
- कुतुबुद्दीन ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था।
- कुतुबुद्दीन को कुरान का खान कहा जाता था क्योंकि वह बहुत अच्छे स्वर में कुरान पढ़ा करते थे ।
- कुतुबुद्दीन को दानी एवं उदार स्वभाव का माना गया है इसलिए उनका नाम लाख बख्श (लाखों का दानी) पड़ा था।
- दो स्मारकों के अलावा उन्होंने अजमेर में अढ़ाई दिन के झोपड़े का निर्माण कराया ।
- कुतुब की मृत्यु के बाद उनके पुत्र को शासक घोषित किया गया था, परंतु इल्तुतमिश ने उनके पुत्र की हत्या करा दी थी एवं स्वयं शासन हथिया लिया था।