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Hindi Inspirational Stories - प्रेरणादायक कहानियां

मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर मदुरै का इतिहास व कथा Meenakshi Amman Temple History Story in Hindi

Moral Stories
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मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर मदुरै का इतिहास व कथा Meenakshi Amman Temple History Story in Hindi
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मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर मदुरै का इतिहास व कथा Meenakshi Amman Temple History Story in Hindi -Meenakshi Sundareshwar Temple

Contents
मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर मदुरै का इतिहास व कथा Meenakshi Amman Temple History Story in Hindiइतिहास व कथावास्तुकलामीनाक्षी तिरुकल्याणंअन्य दर्शनीय स्थल

मीनाक्षी देवी पीठ मदुरई भारत के दक्षिणी प्रदेश तमिलनाडू के वैगई नदी के दाहिने तट पर बसा हुआ शहर मदुरई एक पवित्र नगर है। मीनाक्षी देवी ही माँ पार्वती हैं और सुंदरेश्वर भगवान शिव जी का ही रूप हैं। इस मंदिर को बहुत ही पवित्र माना जाता है।

यह मंदिर माँ पार्वती के मंदिरों में से सबसे अधिक पवित्र माना जाने वाला स्थल है। यह मन्दिर पांडियन राजाओं की राजधानी रह चुका है। ढाई हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन इस नगर का नाम संस्कृत भाषा के ग्रंथों में मधुरा लिखा मिलता है।

इसे दक्षिण मथुरा भी कहा जाता है। मदुरई शताब्दियों से तमिल साहित्य और संस्कृति का केंद्र रहा है। इसका दक्षिण में वही स्थान है जो उत्तर भारत का विद्या के क्षेत्र में काशी या बनारस का था। इसीलिए मदुरई को दक्षिण की काशी भी कहते हैं। यह मंदिर तमिलनाडु का मुख्य आकर्षण का केंद्र है। मीनाक्षी देवी पीठ की धार्मिक पृष्भूमि कुछ इस प्रकार से है।

मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर मदुरै का इतिहास व कथा Meenakshi Amman Temple History Story in Hindi

इतिहास व कथा

मलय ध्वज की कोई संतान ना थी। उन्होंने पत्नी कंचन माला के साथ घोर तप किया तब शिव भगवान ने उन्हें कन्या संतान होने का वरदान दिया। पार्वती जी अपने अंश से कन्या रूप में प्रकट हुईं।

इनके नेत्र अत्यधिक सुन्दर होने के कारण इनका नाम मीनाक्षी रखा गया। सुंदरेश्वर ने मीनाक्षी से विवाह का संकल्प लिया । तब उन दोनों का विवाह संपन्न कराया गया।

एक मान्यता यह भी है कि इस विवाह में पूरी पृथ्वी के लोग उपस्थित थे। मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु स्वयं अपने स्थान वैकुण्ठ से इस विवाह के संचालन के लिए आ रहे थे लेकिन इंद्र भगवान के कारण उन्हें देरी हो गयी।

फिर विवाह का संचालन स्थानीय देव कूडल अझघ्अर के द्वारा पूर्ण कराया गया था। अंत में भगवान विष्णु आये और ऐसा देखकर क्रोधित हो गए और उन्होंने निर्णय लिया कि वे कभी भी मदुरई नहीं आएंगे और नगर की सीमा से लगे पर्वत अलगार कोइल में जाकर रहने लगे। बाद में उन्हें देवी-देवताओं के द्वारा मनाया गया और बाद में उन्होंने मीनाक्षी और सुंदरेश्वर का विवाह संपन्न कराया।

मीनाक्षी देवी और सुंदरेश्वर भगवान का विवाह कराना और भगवान विष्णु जी के क्रोध को शांत करना, इन दोनों ही घटनाओं को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है जिसे –  चितिरई तिरुविझा कहते हैं। परम्पराओं के अनुसार मदुरई में केवल कदम वन था। वहां सुंदरेश्वर का स्वयंभू लिंग था। स्वयं देवता उसकी पूजा करते थे।

राजा मलय ध्वज ने जब ये सुना तो वहां मंदिर बनाने का निश्चय किया गया। स्वप्न में स्वयं शिव भगवान ने इस संकल्प की परीक्षा की और एक दिन सर्प रूप धारण कर नगर की सीमा का निर्धारण भी कर गए। इस प्रकार सुन्दर, भव्य मीनाक्षी मंदिर राजा मलय ध्वज  द्वारा निर्मित कराया गया।

वास्तुकला

मदुरई नगर का मुख्य आकर्षण मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तु कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। आयताकार क्षेत्र में बना यह मंदिर जो मदुरई के पुराने नगर में स्थित है, यहाँ का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। मंदिर में कुल 27 गोपुरम हैं जिन पर देवी – देवताओं और विभिन्न जीव-जंतुओं की बेशुमार रंग-बिरंगी आकृतियां बनी हैं।

इसमें दक्षिण दिशा का गोपुरम सबसे विशाल है। जिसकी ऊंचाई 160 फुट है। इस गोपुरम से मदुरई नगर का दृश्य बड़ा मनोरम दिखता है। मीनाक्षी मंदिर में प्रवेश द्वार के पास तीन परिक्रमा स्थल हैं। तीसरे परिक्रमा पथ में मूर्ति के दर्शनों के लिए गर्भ गृह तक जाने का मार्ग है।

इस मंदिर का गर्भ गृह 3500 वर्ष पुराना है। यह मंदिर परिसर लगभग 45 एकड़ की भूमि में बना हुआ है। मीनाक्षी देवी की श्याम वर्ण की मूर्ति अत्यंत सजीव है। बहुमूल्य आभूषणों से सजी इस मूर्ति को देखकर श्रध्दालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

इस मंदिर में मीनाक्षी देवी और सुंदरेश्वर देव की आकर्षक प्रतिमा है। सुंदरेश्वर देव (शिव जी) की प्रतिमा नटराज मुद्रा में स्थापित है। यह नटराज की विशाल प्रतिमा चांदी की वेदी में है। इस कारण से इसे वेल्ली अम्बलम् (रजत आवासी) कहते हैं।

मंदिर परिसर में गणेश जी का सुन्दर मंदिर भी है जिसे मुकुरुनय विनायगर् कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के सरोवर की खुदाई के समय यह मूर्ति मिली थी।

मीनाक्षी तिरुकल्याणं

यहाँ का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार “मीनाक्षी तिरुकल्याणं है , जिसका मतलब है कि “मीनाक्षी देवी का विवाह” । इसे अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। जहाँ लांखों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं।

मीनाक्षी देवी और सुंदरेश्वर भगवान के इस विवाह को दक्षिण भारत के लोग बड़ी धूम – धाम के साथ मनाते हैं। इसे “मदुरई विवाह” भी कहा जाता है। इस त्यौहार को मनाने के लिए मनुष्य और देवी – देवतागण सभी उपस्थित होते हैं। इस एक महीने के त्यौहार में कई सारे पर्व होते हैं। इसमें “थेर थिरुविजहः” और “ठेप्पा थिरुविजहः” मुख्य हैं।

कुछ अन्य त्यौहार जैसे शिवरात्रि और नवरात्रि इस मंदिर में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यहाँ वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।

ऐसा अंदाज़ा लगाया गया है कि लगभग 20,000 श्रद्धालु प्रतिदिन यहाँ दर्शन के लिए आते हैं और शुक्रवार के दिन लगभग 30,000 श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर में 33,000 मूर्तियां हैं। माँ पार्वती जी के मंदिरों में से यह मंदिर अबसे अधिक पवित्र स्थल माना जाता है।

अन्य दर्शनीय स्थल

यहाँ पर अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं। पोत्रमरै कूलम, यह मंदिर परिसर में स्थित सरोवर है जिसे स्वर्ण कमल वाला सरोवर भी कहते हैं। यहीं सहस्र स्तंभ मण्डप (आयिराम काल मण्डप या सहस्र स्तंभ मण्डप या हजा़खम्भों वाला मण्डप) भी स्थित है जिसकी शिल्प कला की प्रशंसा हर कोई करता है। वास्तव में यह मंदिर कलाकृति का एक अद्भुत स्थल है।

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