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Hindi Inspirational Stories - प्रेरणादायक कहानियां

मणिकर्णिका – झाँसी की रानी Manikarnika – The Queen of Jhansi in Hindi

Moral Stories
8 Min Read
मणिकर्णिका - झाँसी की रानी Manikarnika - The Queen of Jhansi in Hindi
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मणिकर्णिका – झाँसी की रानी Manikarnika – The Queen of Jhansi in Hindi , रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर सन् 1828 ई० को (काशी) वाराणसी के भदैनी नामक ग्राम में हुआ। इनके बचपन का नाम मणिकार्णिका था।

Contents
मणिकर्णिका – झाँसी की रानी Manikarnika – The Queen of Jhansi in HindiBollywood Film – मणिकर्णिका – झाँसी की रानी Manikarnika – The Queen of Jhansi in Hindiद्वारा निर्देशितलेखन क्रेडिटकास्ट

मणिकर्णिका – झाँसी की रानी Manikarnika – The Queen of Jhansi in Hindi

पढ़ें: झाँसी की रानी की जीवनी

मणिकर्णिका को प्यार से मनु बुलाते थे। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मनु मराठा परिवार से थी। इनके पिता मराठा बाजीराव के यहां सेवा करते थे। मनु की माता सुसंस्कृत एवं बुद्धिमान थी तथा कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया।

अब मनु की देखभाल करने के लिए कोई नहीं बचा था। उनके पिता इसीलिए मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। मनु सुंदर एवं चंचल थी। मनु ने बचपन में शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र की भी शिक्षा ग्रहण की।

सन् 1842 ई० में झांसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ मनु का विवाह हुआ। विवाह के बाद से वह झांसी की रानी कही जाने लगीं। विवाह होने के कुछ समय पश्चात उनका नाम मनु से बदलकर रानी लक्ष्मीबाई रखा गया।

तभी से यह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कही जाने लगी थीं। विवाह के 9 वर्ष के बाद 1851 ई० में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म के 4 महीने के बाद ही रानी लक्ष्मीबाई के पुत्र की मृत्यु हो गई।

रानी लक्ष्मीबाई को इससे बहुत बड़ा झटका लगा परंतु उन्होंने खुद को बहुत संभाला। पुत्र की मृत्यु के सदमे के कारण राजा गंगाधर राव का भी स्वास्थ्य खराब रहने लगा। सन् 1853 ई० में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत ज्यादा बिगड़ गया तब उनको दत्तक पत्र लेने की सलाह दी गई।

गोद लेने के बाद ही 21 नवंबर सन् 1853 ई० को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। पति के अमृता से रानी लक्ष्मी बाई बहुत उदास हो गई अब उनको कुछ सूझ नहीं रहा था। उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोने दिया और किसी तरह से उन्होंने अपने आप को संभाला।

उस दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया। 27 फरवरी 1854 ई० को लॉर्ड डलहौजी ने दामोदर राव की गोद लेने को अस्वीकृत कर दिया और झांसी को अंग्रेजी विरासत में मिलाने की घोषणा कर दी। इसकी सूचना रानी लक्ष्मीबाई को मिलते ही उन्होंने कहा कि “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी”।

ब्रिटिश अधिकारियों ने झांसी के खजाने को जप्त कर लिया और यह ऐलान कर दिया कि उनके पति के कर्ज को रानी के प्रतिवर्ष के खर्च में से काटा जाएगा, इसीलिए रानी लक्ष्मीबाई को झांसी का किला छोड़कर रानी महल में जाना पड़ा। रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने किसी भी कीमत पर झांसी की रक्षा करने का निश्चय किया।

भारत की जनता में विद्रोह की भावना बढ़ती जा रही थी। पूरे देश में क्रांति लाने के लिए 31 मई सन् 1857 ई० की तारीख तय की गई परंतु इस तारीख से पहले ही क्रांति फैल गई। साथ में ही 1857 को मेरठ और 4 जून 1857 को कानपुर में क्रांति हो गई।

अंग्रेजों ने बहुत कोशिश की, कि विद्रोह ना हो तथा झांसी की तरफ बढ़ने लगे। रानी लक्ष्मीबाई पहले से सावधान थी उन्होंने झांसी की सुरक्षा को बेहतर बनाना शुरू कर दिया। सेना में महिलाओं की भर्ती की जाने लगी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण की कला सिखाई जाने लगी। झांसी की जनता ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया। झलकी बाई जो रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी उसे सेना में प्रमुख स्थान दिया गया।

सन् 1857 ई० में ओरछा और दतिया के राजा ने झांसी पर आक्रमण कर दिया परंतु रानी लक्ष्मीबाई ने उनके इस प्रयास को विफल कर दिया। सन् 1858 ई० में ब्रितानियों ने झांसी के शहर को चारों तरफ से घेर लिया।

ब्रितानियों का यह भी उद्देश्य था कि दामोदर राव की हत्या कर दी जाए। रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानियों के साथ दो हफ्तों तक युद्ध किया। युद्ध में दामोदर राव की भी रक्षा करनी थी क्योंकि वह आगे का वंश था।

रानी लक्ष्मीबाई ने उसको अपने पीठ पर बांधकर ब्रितानियों से बहुत ही साहस के साथ मुकाबला किया। युद्ध के दौरान रानी लक्ष्मीबाई का घोड़ा बहुत जख्मी हो गया था। अत्यधिक जख्मी होने के कारण वह घोड़ा वीरगति को प्राप्त हो गया।

लेकिन फिर भी रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और ब्रितानियों से डटकर मुकाबला किया परंतु रानी लक्ष्मीबाई को सफलता ना मिल सकी और अंग्रेजों ने शहर को अपने कब्जे में ले लिया। रानी लक्ष्मीबाई किसी तरह दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बचकर भाग निकलने में सफल रही। वह भागकर कालपी पहुंची।

कालपी पहुंच कर रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे से मिली। वहां पहुंचने के बाद तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई तथा उनकी सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की सहायता से वही की एक किले पर युद्ध बोल दिया और उस पर कब्जा कर लिया।

18 जून सन् 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से भयंकर युद्ध हुआ। रानी लक्ष्मीबाई ने उनको बराबर टक्कर दी परंतु युद्ध में लड़ते हुए वो वीरगति को प्राप्त हो गई।

Image credit – Flickr Juggadery

Bollywood Film – मणिकर्णिका – झाँसी की रानी Manikarnika – The Queen of Jhansi in Hindi

Source – IMDB

द्वारा निर्देशित

राधा कृष्ण जगरलामुदी … (कृष जगरलामुदी के रूप में)
कंगना रनौत  

लेखन क्रेडिट

विजयेंद्र प्रसाद … (कहानी और पटकथा)
 
प्रसून जोशी … (संवाद)

कास्ट

 
  कंगना रनौत … मणिकर्णिका
  डैनी डेन्जोंगपा … गुलाम मुहम्मद गोह खान खान
  अंकिता लोखंडे … झलकारी बाईटोपे
  अतुल कुलकर्णी … तात्या
  सुरेश ओबेरॉय … पेशवा बाजी राव II
  जीशु सेनगुप्ता । .. महाराजा गंगाधर राव (जिशु सेनगुप्ता के रूप में)सोनेंब्लिक
  एडवर्ड … कैप्टन गॉर्डन
  रिचर्ड कीप … जनरल ह्यू रोज़
  निहार पांड्या    
  विक्रम कोचर … नाना साहेब
  आर। भक्ति क्लेयर … लॉर्ड कैनिंग
  प्राजक्ता माली … काशीबाई।
  मनीष वाधवा … मोरोपंत
  राम गोपाल बजाज … दीक्षित
  राजीव काचरू … गुल मोहम्मद
  नलनेश नीलतेज … सिंह
  डेनियल ओ’केन … लेफ्टिनेंट।
       
       
       
       
       
     

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