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बाल गंगाधर तिलक निबंध व जीवनी Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi

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7 Min Read
बाल गंगाधर तिलक की जीवनी Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi
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बाल गंगाधर तिलक निबंध व जीवन परिचय Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi

Contents
बाल गंगाधर तिलक निबंध व जीवन परिचय Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindiप्रारंभिक जीवन Early Life and Educationकेसरी और दी महरत्ता Kesari – The Lion and The Mahratta Newspapersराजनीतिक करियर Political Careerइंग्लैंड की यात्रा England Visitमृत्यु Death

बाल गंगाधर तिलक जिन्हें हम लोकमान्य तिलक (Lokamanya Tilak) के नाम से भी जानते हैं एक महान विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक, और राष्ट्रवादी व्यक्ति थे। उन्होंने आजाद भारत के नीव को मजबूत बनाने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

स्वयं अपने दम पर ब्रिटिश शासन को चुनौती देते हुए उन्होंने एक राष्ट्रीय आंदोलन को जागृत किया। लोकमान्य तिलक जी सन् 1914 में भारतीय गृह नियम लीग (Indian Home Rule League) के अध्यक्ष बने और 1916 में उन्होंने लखनऊ संधि को मोहम्मद अली जिन्ना के साथ संपन्न किया, जो राष्ट्रवादी संघर्ष में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए बनाया गया था।

बाल गंगाधर तिलक निबंध व जीवन परिचय Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi

प्रारंभिक जीवन Early Life and Education

बाल गंगाधर तिलक का जन्म एक सुसंस्कृत मध्यम वर्ग के ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई 1856 में रत्नागिरी, महाराष्ट्र, भारत में हुआ था। क्योंकि उनका जन्म महाराष्ट्र राज्य के तटीय क्षेत्र में हुआ था उन्होंने अपने जीवन के पहले 10 साल वहां रहे थे। बाल गंगाधर तिलक जी के पिता एक शिक्षक और विख्यात व्याकरणकर्ता थे जिन्हें बाद में पूना में नौकरी मिले जिसके कारण उनका परिवार वहां रहने लगे।

बाल गंगाधर तिलक के पिता का नाम श्री गंगाधर तिलक और माता का नाम पार्वतीबाई गंगाधर था। लोकमान्य तिलक जी ने गणित और संस्कृत में अपनी बैचलर डिग्री(Bachelor degree) पूना(Poona) के डेक्कन कॉलेज(Deccan College) से 1876 में पूरी की थी।

उसके बाद उन्होंने 1879 में बंबई यूनिवर्सिटी(University of Bombay) से अपनी कानून की पढाई पूरी की थी उसके साथ-साथ वह पूना के एक प्राइवेट स्कूल में गणित के अध्यापक के रूप में कार्य करते थे।

इसी स्कूल से उनके जीवन का राजनीतिक करियर शुरू हुआ और उन्होंने 1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी (Deccan Education Society) को शुरू करने के बाद उस स्कूल को एक यूनिवर्सिटी के रूप में बदल दिया।

उन्होंने उस समय के युवाओं को अंग्रेजी शिक्षा देने पर जोर दिया। उनके समाज़ के सभी लोगों से निस्वार्थ सेवा के आदर्श का पालन करने की उम्मीद थी परन्तु जब पता चला कि कुछ सदस्य स्वयं के फायदे के लिए इससे जुड़े हुए हैं तो उन्होंने सोसाइटी को छोड़ दिया।

केसरी और दी महरत्ता Kesari – The Lion and The Mahratta Newspapers

उसके बाद उन्होंने केसरी (Kesari) और अंग्रेज़ी में दी महरत्ता (The Mahratta) नाम के दो समाचार पत्रों का प्रकाशन कार्य शुरू किया। उन दोनों अख़बारों के कारण से तिलक ब्रिटिश शासन के उन कट्टर आलोचनाओं और उदार राष्ट्रवादियों के लिए व्यापक रूप से जाने जाते थे जिन्होंने पश्चिमी देशों के साथ सामाजिक सुधारों की वकालत की और संवैधानिक सीमाओं के साथ राजनीतिक सुधारों का समर्थन किया।

राजनीतिक करियर Political Career

तिलक ने हिन्दू धार्मिक प्रतीकों के माध्यम से राष्ट्रवादी आंदोलन की लोकप्रियता को बढ़ावा देने की मांग की और साथ ही मुस्लिम शासन के खिलाफ मराठा संघर्ष की लोकप्रिय परंपराओं को लागू करने की बात भी की। उन्होंने उसके पश्चात दो त्यौहार 1893 में गणेश पूजा और 1895 में शिवाजी पूजा की शुरुवात की।

तिलक जी की इन गतिविधियों ने भारतीय जनता को उकसाया, लेकिन जल्द ही उन्हें ब्रिटिश सरकार के साथ संघर्ष के कारण ले जाया गया, वहां उन्हें देशद्रोह के लिए मुकदमा चलाया और 1897 में उन्हें जेल भेज दिया गया। परन्तु उसके बाद उनका नाम लोगों के प्यार के करम लोकमान्य तिलक हो गया और 18 महीने बाद उन्हें जेल से छोड़ दिया गया।

जब लार्ड कर्जों भारत के वाइसराय बने तब उन्होंने 1905 में बंगाल प्रान्त का विभाजन कर दिया जिसके कारण बाल गंगाधर तिलक ने बंगाल के लोगों का बहुत ही अच्छा समर्थन दिया और महात्मा गाँधी जी के सत्याग्रह और अहिंसा आन्दोलन की तरह ही ब्रिटिश सरकार के सामान का बहिष्कार किया। तिलक का लक्ष्य भी भारत की पूर्ण स्वतंत्रता थी ना की आधी।

मंडाले जेल में, बाल गंगाधर तिलक जी ने अपने महान लेखन कार्य, श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य (“Secret of the Bhagavadgita”) लिखने के लिए रह गए थे। साल 1893 में तिलक जी ने The Orion प्रकाशित किया जो वेदों के ऊपर एक शोध था।

सन 1914 में उनकी रिहाई के बाद, प्रथम विश्व युद्ध की पूर्व संध्या पर, तिलक एक बार फिर राजनीति से जुड़ गए। उन्होंने Home Rule League को उग्र घोषित किया जिसका मुख्य स्लोगन था, “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मुझे ये मिलेगा।”

(कार्यकर्ता एनी बेसेंट ने एक ही नाम के साथ एक संगठन की स्थापना की थी)। 1916 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के साथ ऐतिहासिक लखनऊ संधि(Lucknow Pact), हिंदू-मुस्लिम समझौते पर हस्ताक्षर किया।

इंग्लैंड की यात्रा England Visit

तिलक भारतीय होम रूल लीग(Home Rule League) के अध्यक्ष के रूप में 1918 में इंग्लैंड का दौरा करने के लिए गए। उन्हें एहसास हुआ की ब्रिटिश राजनीति में लेबर पार्टी(Labour Party) बढ़ती शक्ति थी, इसलिए उन्होंने अपने नेताओं के साथ दृढ़ रिश्तों की स्थापना की। वह लेबर सरकार ही थी जिसके कारण 1947 में भारत को आज़ादी मिली।

साल 1919 में बल गंगाधर तिलक जी भारत लौटे और अमृतसर के कांग्रेस पार्टी मीटिंग में भाग लिया। उन्होंने विधायी परिषदों के चुनावों का बहिष्कार करने की गांधी की नीति का विरोध करने के लिए पर्याप्त रूप से बिनम्र बात किया। महात्मा गाँधी जी ने तिलक जी को स्राधांजलि देते हुए आधुनिक भारत के निर्माता ‘The Maker of Modern India’ और पंडित जवाहर लाल नेहरु जी ने ‘भारतीय क्रांति के पिता’ The Father of the Indian Revolution का नाम दिया है।

मृत्यु Death

बाल गंगाधर तिलक / लोकमान्य तिलक जी का निधन 1 अगस्त 1920, निमोनिया होने के कारण हुआ था।

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