खुदीराम बोस का जीवन परिचय Life history of Khudiram Bose in Hindi
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 में हुआ था। उनके पिता त्रैलोकनाथ बसु ब्रिटिश सरकार में तहसीलदार थे। खुदीराम बोस को भारत के सबसे ज्यादा। युवा क्रांतिकारियों में जाना जाता है। गौरतलब है कि बोस ने अपने दोस्त प्रफुल्ल चकी के साथ मिलकर, क्रांतिकारियों के खिलाफ गलत और अनुचित फैसले करने वाले जज किंग्सफोर्ड को मारने की योजना बनाई थी।
बोस द्वारा बनाई गई यह योजना सही तरह से नहीं क्रियान्वित की गई और योजना के बिगड़ने के कारण जज के स्थान पर दो बेगुनाह ब्रिटिश महिलाओं की जान चली गई। उसके बाद 18 साल की छोटी सी ही उम्र में बोस को फांसी दे दी गई थी। बोस के खिलाफ अंग्रेजी हुकूमत में काफी ज्यादा गुस्सा था और बोस की फांसी रुकवाने के लिए आंदोलन कारी दो धड़े में बंट गए थे।
एक धड़ा था महात्मा गांधी के समर्थकों का जो अहिंसा के समर्थक थे और यह चीख चीख कर कह रहे थे कि इस तरह से कृत्यों से आजादी नहीं मिलेगी । स्वंय महात्मा गांधी ने भी यही कहा था कि भारतीय लोगों को ऐसे कृत्यों से आजादी नहीं मिलेगी। दूसरा धड़ा उन लोगों का था जो बोस के समर्थक थे जैसे कि बाल गंगाधर तिलक। तिलक द्वारा अपने अखबार केसरी में बोस का बचाव करने पर उन्हे गिरफ्तार भी कर लिया गया था।
खुदीराम बोस का जीवन परिचय Life history of Khudiram Bose in Hindi
बचपन से क्रांतिकारी
बोस का जन्म एक बड़े परिवार में हुआ था। बोस के तीन बड़े भाई बहन भी थे और वे अपने परिवार मे चौथी संतान थे। उन्होने काफी कम उम्र में अपने माता पिता को खो दिया था। गौरतलब है कि बोस जब 6 साल के थे तब ही उनकी माता स्वर्गवासी हो गईं थीं और बोस जब 7 साल के तब उनके पिता का भी देहांत हो गया।
बोस अपने बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे। 1902 और 1903 के दौरान खुदीराम बरीन्दर कुमार घोष के संपर्क में आए और यहीं से उनके जेहन में देश के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून समा गया।
किंग्सफोर्ड ही क्यूँ
किंग्सफोर्ड अलीपुर की जिला कोर्ट का मुख्य जज था। किंग्सफोर्ड के मजिस्ट्रेट रहते ही अदालत में कई ऐसे फैसले किए गए जो कि क्रांतिकारी हवा को थम जाने पर मजबूर कर रहे थे। गौरतलब है कि किंग्सफोर्ड द्वारा जुगंतर नामक अखबार के सभी संपादकों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी।
गौरतलब है कि किंग्सफोर्ड ने एक और बंगाली युवा क्रांतिकारी, सुशील सेन को केवल विरोध करने के जुर्म में काफी कड़ी सजा दी थी। इन सारे कृत्यों के कारण किंग्सफोर्ड के खिलाफ गुस्सा खासा बढ़ता जा रहा था और बंगाल के सभी क्रांतिकारी और आंदोलनकर्ता किंग्सफोर्ड को हटाना चाहते थे।
बोस की योजना
खुदीराम बोस 15 वर्ष की उम्र से ही जुगंतर से जुड़े हुए थे। गौरतलब है कि यह एक पार्टी थी और अखबार के माध्यम से लोगों में अपने विचारों को फैलाती थी। बोस को बम का निर्माण करना आ चुका था और वे अपने साथियों के साथ पुलिस स्टेशन के पास अक्सर बम लगाकर भाग जाया करते थे। बम अक्सर ऐसी जगह पर लगाया जाता था जिससे कि जान की हानि न हो, और वे अपना खौफ कायम करने में कामयाब हो जाएं।
जुगंतर पार्टी के द्वारा किंग्सफोर्ड को मारने का एक बार प्रयत्न किया जा चुका था, लेकिन वे उसमें असफल रहे थे। गौरतलब है कि यह प्रयत्न जुगंतर पार्टी के ही कार्यकर्ता हेमचंद्र द्वारा की गई थी। हालांकि इस दौरान किंग्सफोर्ड बच गया और उसकी पदोन्नति करके, जिला न्याय समिति का अध्यक्ष बनाकर मुजफ्फरपुर, बिहार भेज दिया गया था।
इस प्रयत्न के बाद हेमचंद्र और प्रफुल चकी द्वारा मुजफ्फरपुर का दौरा किया गया जिससे कि किंग्सफोर्ड की सुरक्षा व्यवस्था को जांचा जा सके और आगे की योजना बनाई जा सके। योजना के निर्माण के पश्चात प्रफुल चकी, हेमचंद्र द्वारा दिए गए कुल 6 आउंस के बम को लेकर एक नये लड़के के साथ मुजफ्फरपुर आए, ये नया लड़का खुदीराम बोस थे।
इस दौरान खुदीराम बोस की योजना के अनुसार, प्रफुल चकी और खुदीराम बोस एक धर्मशाला में नाम बदलकर रहने लगे। इस दौरान उन लोगों ने किंग्सफोर्ड पर तीखी नजर रखी हुई थी। लगातार तीन हफ्तों तक सारी गतिविधियां जानने के पश्चात, 29 अप्रैल की शाम दोनों ही अपनी योजना को अंजाम देने पहुंच गए।
इस दौरान उन दोनों ने स्कूली बच्चों का भेस बना रखा था। खुदीराम और प्रफुल ने उस जगह पर पहुंचकर बम फेंक दिया। वह बम जिस जगह पर गिरा उस कैरेज पर दो महिलाएं बैठीं थीं। बम धमाके से वे दोनों महिलाएं काफी ज्यादा जख्मी हो गईं और अंत में दोनों की मृत्यु हो गई।
गिरफ्तारी
बम धमाके को अंजाम देने के पश्चात खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चकी वहां से भाग निकले। लगभग 25 मील से ज्यादा दूर तक भागने के बाद खुदीराम बोस एक वैनी नामक जगह पर पहुंचगए। वहां पर जाकर दो हवलदारों द्वारा पहले शक के आधार पर उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया।
इस दौरान बोस ने भागने की पूरी कोशिश की और बंदूक के दम पर कई बार हवलदारों को डराया भी लेकिन यह सब नाकाम रहा। गिरफ्तारी के समय बोस के पास 2 बंदूकें, 37 राउंड तक चलने भर गोलियां, 30 रुपये नगद और रेल्वे का मानचित्र था। जिस जगह पर बोस की गिरफ्तारी हुई थी, उस जगह को आज खुदीराम बोस स्टेशन के नाम से जाना जाता है।
प्रफुल्ल चकी भी उस बम धमाके के बाद काफी दूर तक भागे थे और इस दौरान उनकी मुलाकात त्रिगुणचरण घोष नामक व्यक्ति से हुई और इस व्यक्ति ने प्रफुल की काफी ज्यादा मदद की। उस व्यक्ति ने घोष के रहने खाने का बंदोबस्त किया और उन्हे हावड़ा तक ट्रेन से जाने का इंतजाम भी कर दिया।
हावड़ा जाने के दौरान प्रफुल को ट्रेन में ब्रिटिश पुलिस का एक सब इंस्पेक्टर मिल गया और उसने प्रफुल को पहचान लिया। प्रफुल ने खुद को बचाने के लिए वहां से भागना उचित समझा और मोकमघाट स्टेशन से भागते हुए उन्होने अपने आपको गोली मारकर आत्महत्या कर ली।
प्रफुल के मरने के पश्चात खुदीराम ने सभी कृत्यों की जिम्मेदारी खुद पर ले ली और उनकी अदालत में पेशी प्रारंभ हो गई। उनके केस का निर्णय तीन सुनवाइयों के दौरान लिया गया। उनके केस की पहली तारीख 21 मई 1908 की थी।
दूसरी सुनवाई 8 जुलाई को हुई जिसमें खुदीराम बोस के वकील ने यह दलील दी कि बम फेंकने वाले प्रफुल्ल चकी थे, खुदीराम बोस नहीं। इस दलील का केस पर कोई खास असर नहीं हुआ और अन्त में खुदीराम बोस की फांसी की सजा सुना दी गई।
फांसी
खुदीराम बोस को, 11 अगस्त 1908 को, 18 साल, 8 महीने, 8 दिन की उम्र में फांसी पर लटका दिया गया था। पूरा कोलकाता इसका विरोध करते हुए सड़कों पर था और बोस से भी यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि वे आगे हाई कोर्ट में अपील करेंगे, लेकिन उन्होने ऐसा नहीं किया और फांसी स्वीकार कर ली।