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बेगम हजरत महल का जीवन परिचय Life History of Begum Hazrat Mahal in Hindi

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8 Min Read
बेगम हजरत महल का जीवन परिचय History of Begum Hazrat Mahal in Hindi
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बेगम हजरत महल का जीवन परिचय Life History of Begum Hazrat Mahal in Hindi

Contents
बेगम हजरत महल का जीवन परिचय Life History of Begum Hazrat Mahal in Hindi प्रारंभिक जीवन नवाब से तलाक विद्रोह का कारण 1857 का आंदोलन और बेगम हजरत महलजेल में ली आखिरी सांसे इतिहास के पन्नों में गुमनामी 

बेगम हजरत महल, भारत की एक अनन्य स्वतंत्रता सेनानी थीं, अवध की बेगम थीं और प्रसिद्ध नवाब, लखनऊ के नवाब, वाजिद अली शाह की पत्नी थीं। बेगम हजरत महल को मुख्य तौर पर आजादी के पहले आंदोलन में अपनी भूमिका और समर्थन के लिए जाना जाता है।

गौरतलब है कि आजादी का पहला आंदोलन सन 1857-58 में किया गया था, जिसके मुख्य किरदारों जैसे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, नाना साहब और बेगम हजरत महल थे।

बेगम हजरत महल का जीवन परिचय Life History of Begum Hazrat Mahal in Hindi 

प्रारंभिक जीवन 

बेगम हजरत महल का असल नाम मुहम्मदी खनूम था। उनका जन्म सन 1820 में, अवध प्रांत के फैजाबाद जिले में हुआ था। बेगम हजरत महल बचपन से ही काफी खूबसूरत थीं और काफी तेज दिमाग की थीं।

शुरुआती जीवन में उन्हे अवध के दरबार में गणिका के तौर पर नियुक्त किया गया था। उसके बाद बीतते दिनों के साथ ही राजमहल में उनकी पैठ बनती चली गईं। गणिका के तौर पर कुछ समय काम करने के पश्चात उन्हे शाही हरम में एक ख्वासीन बनाकर रखा गया।

गौरतलब है कि उन्हे उनके परिवार द्वारा बेच शाही तंत्र को बेच दिया गया था। ख्वासीन के बाद वे शाही हरम में परी के पद पर पदोन्नत हो गईं थीं। इसके बाद उन्हे अवध के आखिरी नवाब, वाजिद अली शाह ने अपनी बेगम बना लिया था। मुहम्मदी खनूम को उनके बेटे के जन्म के बाद “बेगम हजरत महल” के नाम से नवाजा गया। 

नवाब से तलाक 

1856 तक अवध काफी ज्यादा विस्तृत था, लेकिन उसके बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा अवध को बांट दिया गया था। नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता में नियुक्त कर दिया गया था। इस दौरान बेगम हजरत महल ने वाजिद अली शाह से तलाक लेकर, लखनऊ की रियासत को संभाल लिया था। 

विद्रोह का कारण 

आजादी के पहले आंदोलन के दौरान पूरा भारत अलग अलग रियासतों में बंटा हुआ था और सभी रियासतदार भारत की नहीं अपितु अपनी रियासत की अँग्रेजों से आजाद कराना चाहते थे। आजादी का पहला आंदोलन सन 1858-58 में हुआ और इस आंदोलन से जुड़ने वाले सभी लोगों के पास विद्रोह का अपना एक अलग कारण था। अवध की बेगम ने अराधना करने की स्वतंत्रता के लिए इस विद्रोह में हाथ डाले थे। 

गौरतलब है कि अंग्रेजों ने भारत में आयात और निर्यात को सुगम करने के लिए कई तरह के साधनों का निर्माण किया, उदाहरणतः सड़कों और रेलगाड़ी। अंग्रेज सड़कों के निर्माण के दौरान बीच में आने वाले मंदिरों और मस्जिदों को तोड़ दिया करते थे, जिस कारण बेगम हजरत महल अंग्रेजों का विरोध करने पर मजबूर हो गईं।

अपने दिए एक व्यक्तव्‍य में बेगम हजरत महल ने कहा था, 

“सुअर का मीट लोगों को खिलाकर, लोगों का जबरन ईसाइयत में परिवर्तन करके, लोगों को अंग्रेजी सीखने के लिए वजीफे देकर, मंदिर मस्जिदों को तोड़कर उनकी जगह पर चर्च बनाकर, कम्पनी कैसे सोच सकती है कि कैसे यह धर्म को प्रभावित नहीं करेगा”।

1857 का आंदोलन और बेगम हजरत महल

पढ़ें : सन 1857 के विद्रोह के विषय में पूरी जानकारी

आजादी के पहले आंदोलन के दौरान रियासतों और आंदोलनकारियों के मध्य एक अनूठी एकता देखने को मिली थी। इस दौरान बेगम हजरत महल ने अवध की गद्दी प्राप्त कर ली थी और उन्होने जल्द ही अपने बेटे बिरजिस कादिर को अवध का नवाब घोषित कर दिया था।

आंदोलन के दौरान उन्होने नाना साहब की काफी ज्यादा मदद की और यथासंभव समर्थन किया। इस दौरान उन्होने नेपाल के राजा राणा जंग बहादुर को अंग्रेजी अफसरों के ठिकाने के बारे में काफी ज्यादा और खुफिया जानकारी मुहैया कराईं।

आंदोलन के दौरान आंदोलन कारियों को अपनी शरण में ठिकाना देने के साथ साथ उन्होने आंदोलनकारियों को अस्त्रों से भी लबरेज किया था। उन्हे उनके कामों के कारण “अवध की लक्ष्मीबाई” कहा जाता था। 

आंदोलन के दौरान उन्हे उनकी प्रसिद्धि और लोकप्रियता के कारण अवध के लोगों का काफी ज्यादा समर्थन मिला और उन्होने लगभग सभी लोगों को आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। 1858 में यह आंदोलन, बेहतर रणनीति की कमी के कारण बंद कर दिया गया और इसका परिणाम निरर्थक रहा। 

जेल में ली आखिरी सांसे 

1858 में आंदोलन रुक जाने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने दुबारा इस तरह की स्थिति न उत्पन्न न होने के लिए सभी रियासतों और जमीदारों को अपनी निगाह में रखना शुरू कर दिया। कई सारी रियासतों पर ब्रिटिश सरकार द्वारा रखे गए प्रतिनिधि शासन करने लगे थे।

आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार सभी आंदोलनकारियों से काफी ज्यादा खुन्नस खाई बैठी थी। ब्रिटिश सरकार के गुस्से का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1858 में उन्हे गिरफ्तार करने के बाद कभी रिहा नहीं किया गया। 

सन 1858 में लखनऊ की रियासत और अवध को ब्रिटिश सरकार ने बिरजिस कादिर से छीन लिया और उन्हे उनकी माँ यानी बेगम हजरत महल के साथ नेपाल की जेल में बंद कर दिया गया। नेपाल की जेल में रहते हुए उन्होने अपनी आखिरी सांस ली और 1879 में काठमांडू की जेल में उन्होने आखिरी सांसे ली।

उनकी मृत्यु के पश्चात उन्हे काठमांडू में ही स्थित जामा मस्जिद के गुमनाम कब्रिस्तान में दफना दिया गया। अवध के अनौपचारिक आखिरी नवाब  बिरजिस कादिर को 1887 में जेल से रिहा कर दिया गया था। 

इतिहास के पन्नों में गुमनामी 

बेगम हजरत महल ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा आजादी की लड़ाई और उस लड़ाई को लड़ने की मिली सजा में बिताया। उन्होने अपने शुरुआती जीवन में जितने अच्छे दिन देखे, अन्त का जीवन उतना ही बुरा और कठोर था। और इस पर भी उन्हे इतिहास के पन्नों में अब तक गुमनामी ही मिली है।

भारत की आजादी के बाद काठमांडू की जामा मस्जिद के पास बेगम हजरत महल का मकबरा बनवाया गया था। 15 अगस्त 1962 को लखनऊ के हजरत गंज में ओल्ड विक्टोरिया पार्क में बेगम हजरत महल को सम्मानित किया गया था। ओल्ड विक्टोरिया पार्क का नाम बेगम हजरत महल रख दिया गया था। गौरतलब है कि उनके सम्मान में 1984 में भारत सरकार ने लगभग डेढ़ लाख से भी अधिक स्टांप पेपर बनाए थे। 

आशा करते हैं आपको बेगम हजरत महल का जीवन परिचय History of Begum Hazrat Mahal in Hindi अच्छा लगा होगा!

Image Credit –
https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Begum_hazrat_mahal.jpg

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