कित्तूर की रानी चेन्नम्मा का इतिहास Kittur Rani Chennamma History in Hindi
रानी चेनम्मा का जन्म (झाँसी के 1857 के विद्रोही लड़ाई जो की रानी लक्ष्मीबाई द्वारा ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ी गयी थी) से 56 वर्ष पहले हुआ था और वह ब्रिटिश शासन और कप्पा कर के खिलाफ लड़ने वाली पहली महिला थी|
उनकी विरासत और पहली जीत आज भी हर 22-24 अक्टूबर को कित्तूर उत्सव के रूप में , कित्तूर में मनायी जाती है। 11 सितंबर, 2007 को भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा भारतीय संसद परिसर में रानी चेनम्मा की एक प्रतिमा का अनावरण किया गया था। उनकी प्रतिमाएं बेंगलुरु और कित्तूर में भी स्थापित की गई हैं।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा का इतिहास Kittur Rani Chennamma History in Hindi
रानी चेन्नम्मा (23 अक्टूबर, 1778 – 21 फरवरी, 1892) दक्षिणी भारत के कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थीं। अपनी युवा अवस्था में उन्होंने घोड़े की सवारी, तलवार से लड़ने और तीरंदाजी में प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
विवाह और पुत्र की मृत्यु
वह अपने मूल राज्य की रानी बन गई और उन्होंने देसाई परिवार के राजा मल्लासार्ज से शादी कर ली, और उनका एक पुत्र था; लेकिन 1824 में अपने बेटे की मृत्यु के बाद उन्होंने शिवलिंगप्पा को अपना उत्तराधिकारी बनाया| अंग्रेजों ने रानी के इस कदम को स्वीकार नहीं किया और शिवलिंगप्पा को पद से हटाने का आदेश दिया।
ब्रिटिश सरकार का विद्रोह
यहीं से उनका अंग्रेजों से टकराव शुरू हुआ और उन्होंने अंग्रेजों का आदेश स्वीकार करने से इनकार कर दिया। अंग्रेजों की नीति ‘डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स'(1848 और 1856) के तहत दत्तक पुत्रों को राज करने का अधिकार नहीं था। लेकिन चेनममा ने आदेश को खारिज कर दिया।
रानी चेन्नम्मा ने कित्तूर में हो रही ब्रिटिश अधिकारियों की मनमानी को देखते हुए बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर को सन्देश भी भेजा था लेकिन लार्ड एलफिन्स्टोन ने बाहरी युद्ध के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और इसका कोई फायदा नहीं हुआ|
ब्रिटिश अधिकारी, कित्तूर की रानी के खजाने और बहुमुल्य आभूषणों और जेवरात को हथियाना चाहते थे| उस समय रानी के खजाने की कीमत तकरीबन (पंद्रह लाख रुपये थी| इसीलिये ब्रिटिशों ने मुख्य रूप से मद्रास नेटिव हार्स आर्टिलरी के तीसरे दल के साथ 200 आदमियो और 4 बंदूको की विशाल सेना के साथ आक्रमण किया।
परंतु युद्ध के पहले दौर में, अक्टूबर 1824 के दौरान, रानी की सेनाओं द्वारा जॉन ठाकरे, और राजनीतिक एजेंट के साथ ब्रिटिश सेना की भारी हार हुई और कई लोग मारे गए । दो ब्रिटिश अधिकारी, सर वाल्टर इलियट और श्री स्टीवेंसन को बंधक बना लिया गया था।
रानी चेन्नम्मा ने चैपलिन के साथ एक समझौते में बंधकों को रिहा कर दिया और युद्ध समाप्त हो गया लेकिन चैपलिन ने धोखेबाज़ी से और भी सैनिकों के साथ युद्ध जारी रखा| चेनम्मा ने अपने लेफ्टिनेंट, संगोल्लीरायान्ना की सहायता से जमकर युद्ध की लड़ाई लड़ी।
निधन
लेकिन अंततः बैलहॉंगल के किले पर कब्जा कर लिया गया और उन्हें कैद कर दिया गया, जहां उनका 21 फरवरी 1829 को निधन हो गया। संगोलियरेयना ने 1892 तक गुरिल्ला युद्ध जारी रखा, जब तक कि वह अपना कब्ज़ा नहीं कर लेता, लेकिन यह व्यर्थ सवित हुआ, और वह पकड़ा गया और विश्वासघात करके उसे फांसी पर लटका दिया गया|