गरम दल का इतिहास History of Garam Dal in Hindi
आज हम गरम दल के बारे में कुछ जानेंगे और उनसे जुड़े कुछ नेता जैसे लाल बाल पाल की तिकड़ी के बारे में बात करेंगें कि किस तरह हमारे भारत के इन राष्ट्रवादी नेताओं ने भारत को ग़ुलाम की जंजीर से आज़ाद कराया।
गरम दल का इतिहास History of Garam Dal in Hindi
उग्र गरम दल के प्रमुक नेता
अगर हम गरम दल का नाम ले तो सबसे पहले हमें तीन नाम याद आते है –
1. लाल 2. बाल 3. पाल
- लाल – (जीवनी पढ़ें) (opens in a new tab)”>विपिन चंद्र पाल –> (जीवनी पढ़ें) (जीवनी पढ़ें) (opens in a new tab)”>
ये तीन नेता देश में लाल बाल पाल के नाम से भी प्रसिद्ध है।
इसकी शुरुआत कब और क्यों हुई?
उग्रवाद का उदय 1905 से 1918 ई. में हुई जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दो भागों में बंट गयी – गरम दल और नरम दल। इस समय भारत की बागडोर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हाथों में थी जो कि उग्रवादी युग के नाम से जाना जाता है।
यह उस समय की बात है, जब हमारे भारतीय नेताओं का ब्रिटिश सरकार से विश्वास उठ गया तब कांग्रेस में एक नये युग का उदय हुआ जिसे उग्रवादी युग का नाम दिया गया और इस युग में अपनी मांगों को पूरा कराने के लिये शांति की जगह संघर्ष का मार्ग अपनाया गया।
गरम दल के प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय और अरविन्द घोष का नाम प्रमुख है।
नेताओं की विचार धारा
गरम दल के इन नेताओं का यह विचार था कि हम अगर सरकार पर दवाब डालेंगे तो हम अपने अधिकार को प्राप्त कर सकते है अन्यथा हमें कुछ नहीं मिल सकता है।
इस दल की तिकड़ी ने मिलकर क्रांतिकारी हवा चलाई इस तरह लाल-बाल-पाल तिकड़ी ने उस समय के युवा वर्ग में स्वतंत्रता के लिये जोश भर दिया था जो कि संघर्ष करके जल्द ही स्वतंत्रता पाना चाहता था।
अब इस दल में दिन प्रतिदिन युवाओं की संख्या बढती जा रही थी और स्वतंत्रता के लिये आग भी बढ़ती जा रही थी। इस तरह दो दल बन गए एक जो शांति के मार्ग पर चल कर अपने अधिकार पाना चाहता था जो कि नरम दल के नाम से विख्यात हुआ और दूसरा केवल संघर्ष चाहता था और क्रांति का मार्ग अपनाना चाहता था।
उग्रवादी दल अर्थात गरम दल के नाम से विख्यात हुआ। गरम दल के नेता अब सरकार के साथ असहयोग और नौकरशाही के लिए संघर्ष करना चाहते थे।
गरम दल के नेता सरकार द्वारा किये गये सुधारों और उनके द्वारा दिए गये अधिकारों से असंतुष्ट थे। वे सरकार का जितना विद्रोह करते थे उतना ही नरम दल अर्थात् उदारवादी नेताओं का भी विद्रोह करते थे।
नरम दर के प्रति विद्रोह
इसका कारण था नरम दल के नेता ब्रिटिश सरकार की बात कुछ हद तक मान कर भारत को शांति के मार्ग से आज़ाद कराना चाहते थे। नरम दल में कुछ मुख्य नेता थे गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु ,सरदार वल्लभ भाई पटेल।
गरम दल की तिकड़ी के अग्रदूत लाल बाल पाल ब्रिटिश सरकार को वरदान नहीं भारत के लिये एक अभिशाप मानते थे। गरम दल के लोगों को अंग्रेज़ बिलकुल भी पसंद नहीं थे इस दल के नेताओं का मनना था कि स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे प्राप्त करके रहेंगे इसके लिये चाहे कुछ भी करना पड़े हम गुलामी की जंजीर को मिटा कर रहेंगे।
गरम दल के नेता गंगाधर तिलक का कहना था कि अगर हमने अंग्रेजों के साथ सरकार बनाया तो हम अपने देश भारत और भारत की जनता के साथ फिर से धोखा करेंगे। गरम दल के नेता हमेशा वंदे मातरम का नारा लगाते थे क्यों कि अंग्रेजों को यह नारा पसंद नहीं था।
लाल बाल पाल जिन्होंने स्वदेशी आंदोलन की वकालत की उन्होंने सभी आयातित वस्तुओं का बहिष्कार किया। वे विदेशी सामान को अंग्रेजी सरकार के सामने जला देते थे। उन तीनों का मानना था विनती और शांति जैसे हथियारों से अब काम नहीं चलेगा इसी कारण यह तिकड़ी गांधी जी के साथ नहीं थी।
एक बार तो विपिन चंद्र पाल ने गाँधी जी से कहा आप स्वतंत्रता पाने के लिये जो शांति का रास्ता अपना रहे है उस रास्ते से हमें कभी भी आज़ादी नहीं मिल सकती स्वतंत्रता पाने के लिये हमें संघर्ष करना होगा।
इन्होंने 1905 के बंग-भंग में भाग लिया और बंगाल विभाजन के विरुद्ध लोगो को भड़काया इस तरह बंगाल में उन्होंने हड़ताल की और विदेशी वस्तुओं का जनता के साथ मिलकर जमकर बहिष्कार किया भारत की जनता को विदेशी सामान न लेने के लिये समझाया।
लाला लाजपत राय
लाला लाजपत राय का जन्म 18 जनवरी 1865 जैन धर्म में रहने वाले एक परिवार में हुआ था। लाला लाजपत राय को पंजाब का केसरी कहते है इन्ही ने ही पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की थी।
गरम दल के इस नेता ने जब साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया और दौरान ये घायल हुए हुए और 17 नवम्बर 1928 में इस नेता ने अपना शरीर त्याग दिया था।
लाला लाजपत राय के द्वारा लिखी गई पुस्तकें
इन्होने कई पुस्तके लिखी जैसे –
- यंग इंडिया
- अनहैप्पी इंडिया
- इन्होंने अपनी आत्म कथा भी लिखी है।
विपिन चन्द्र पाल
विपिन चन्द्र पल का जन्म 7 नवम्बर 1858 में हबीबगंज बांग्लादेश में हुआ था। ये स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और पत्रकार थे। उनके पिता का नाम रामचंद्र पाल था वे एक जमींदार थे और फ़ारसी में उन्हें महारत हासिल थी।
उन्होंने पॉल कैथेड्रल मिशन में अपनी शिक्षा पूरी की और फिर बाद में उसी कॉलेज में वह शिक्षक बन गये। विपिन चन्द्र पाल तो बहुत छोटी उम्र से ही समाज के सुधारक बन चुके थे और सामाजिक कुरीतियों जैसी परम्पराओं का विरोध करने लगे थे उन्होंने एक विधवा से शादी की थी।
इसी कारण उन्हें अपने घरवालों को त्यागना पड़ा वे अपनी दिल की सुनते थे और उन्होंने वही किया जो उन्हें उचित लगा। 1908 में बाल गंगाधर तिलक खुदीराम बोस के एक बम हमले में साथ दिया जिसके कारण उनको वर्मा की जेल में डाल दिया गया।
उन्होंने उस जेल में कई पुस्तकें लिख डाली और हमारे नेहरू ने उन्हें भारतीय क्रांतिकारी का जनक कहा। इनकी मृत्यु 20 मई 1932 में कोलकाता में हुई।
विपिन चन्द्र पाल के द्वारा लिखी गई पुस्तकें
- स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुऐशन
- नैस्नालिटी एंड एम्पायर
- द न्यू स्पिरिट
- क्वीन विक्टोरिया
- द बेसिक ऑफ रिफार्म
- स्टडी इन हिदुइस्म
बाल गंगाधर तिलक
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 में रत्नागिरी महाराष्ट्र में हुआ था। आप स्वतंत्रता सेनानी के आलावा समाज सुधारक,हिंदी, गणित, संस्कृत, इतिहास और खगोल विज्ञान के विद्वान भी थे उन्होंने भारत की स्वतंत्रता अपना योगदान दिया और कई युवा पीढ़ी को जागृत भी किया।
उन्होंने एल एल वी की डिग्री प्राप्त की और फिर पुणे के एक स्कूल में गणित पढ़ाने लगे बाद में वे एक पत्रकार बन गये और देश को आज़ादी के लिये अपना जीवन दान दे दिया। भारत के सेनानी 1 अगस्त 1920 को हमें छोड़कर हमसे दूर चले गये।