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आदि शंकराचार्य पर निबंध Essay on Adi Shankaracharya in Hindi

Moral Stories
8 Min Read
आदि शंकराचार्य पर निबंध Essay on Adi Shankaracharya in Hindi
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इस आर्टिकल में हमने आदि शंकराचार्य पर निबंध प्रस्तुत किया है , Essay on Adi Shankaracharya in Hindi

भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर धर्मो में बहुत अधिक विविधता पायी जाती है। भारत को विश्व के चार प्रमुख धर्मों हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्म का जन्मदाता माना जाता है। भारत के सम्पूर्ण गौरवशाली इतिहास में यहाँ के प्राचीन सनातन धर्म और यहाँ की संस्कृति का बहुत अधिक योगदान रहा है।

आदि शंकराचार्य पर निबंध Essay on Adi Shankaracharya in Hindi

हारे देश भरते में अनेको ऐसे सन्त महात्माओं ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने ज्ञान से इस परंपरा को आगे बढ़ाने के साथ ही इसे जीवित भी रखने का काम किया। इन्ही सन्त महात्माओ में आदि शंकराचार्य का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जिन्हें प्राचीन भारतीय सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म के नाम से भी जाना जाता है, की स्थापना तथा इसे प्रतिष्ठित करने का श्रेय प्राप्त है। आदि शंकराचार्य जी भारत मे एक महान दार्शनिक और धर्मप्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं।

आदि शंकराचार्य जी का जन्म आज से लगभग ढाई हजार साल पहले 799 ई0 में चेर साम्राज्य के कलाड़ी नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था जो कि वर्तमान में भारत देश के केरल राज्य में स्थित है। आदि शंकराचार्य जी के पिता जी का नाम शिवगुरु तथा माता जी का नाम सुभद्रा था।

इनके पिता जी ने इनकी माता जी के साथ सन्तान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की बहुत दिनों तक आराधना की थी जिसके बाद आदि शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था इसीलिए इनके पिता जी ने इनका नाम शंकर रखा था। जब ये पांच(5) वर्ष के थे तभी इनकी माता जी ने इनका यज्ञोपवीत संस्कार करा कर इनको गुरुकुल में वेदों के अध्ययन के लिए भेज दिया था।

आदि शंकराचार्य बचपन से ही बहुत मेधावी और प्रतिभा के बहुत धनी बालक थे। इन्होंने मात्र दो (2) वर्ष के अल्प समय मे ही सभी वेदों, पुराणों, उपनिषद, रामायण, महाभारत आदि सभी ग्रन्थों को कंठस्थ कर लिया था। ये मात्र सात (7) वर्ष की अल्पायु में ही शास्त्रों के प्रकांड पंडित हो गए थे। आदि शंकराचार्य जी ने अपने बाल्यकाल के आठवें (8 वर्ष) वर्ष में ही सन्यास धारण कर लिया था।

इनको शिवावतार, आदिगुरु, श्रीमज्जगदगुरु, तथा धर्मचक्रप्रवर्तक आदि जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य जी संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान, उपनिषदों की व्याख्या करने वाला, सनातन धर्म के सुधारक तथा अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे।

इनके सन्यास धारण करने के सन्दर्भ में एक कथा प्रचलित है जिसमें बताया गया है कि जब इन्होंने अपनी माता जी से सन्यास धारण करने की अनुमति मांगी तो एक मात्र पुत्र होने के कारण इनकी माता ने आदि शंकराचार्य जी को सन्यास धारण करने से मना कर दिया।

परन्तु एक दिन जब ये नदी में नहा रहे थे तो एक मगरमच्छ ने इनके पैर को पकड़ लिया और इसी अवसर का लाभ उठा कर इन्होंने अपनी माता जी से कहा कि मुझे सन्यास धारण करने की अनुमति नही देंगी तो यह मगरमच्छ मुझे मार डालेगा।

आदि शंकराचार्य जी के प्राणों को संकट में देखकर इनकी माता जी ने इन्हें सन्यास धारण करने की अनुमति दे दी। जैसे ही इनकी माता जी ने इन्हें सन्यास धारण करने की अनुमति दी वैसे ही उस मगरमच्छ ने आदि शंकराचार्य जी के पैरों को भी छोड़ दिया।

अपनी माता जी से सन्यास धारण करने की अनुमति मिलने के बाद इन्होंने गोबिन्द स्वामी जी को अपना गुरु माना और इन्ही से अपनी शिक्षा और दीक्षा ग्रहण की।

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने केरल से ही पैदल यात्रा करके नर्मदा नदी के किनारे पर स्थित ओंकरनाथ गये जहाँ पर इन्होंने गुरु गोबिंदपाद जी से योग शिक्षा तथा ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने लगे। यही पर इन्होंने लगभग तीन(3) वर्षों तक अद्वैत तत्व की साधना की।

अपनी अद्वैत तत्व की साधना को पूर्ण करने के बाद इन्होंने अपने गुरु से आज्ञा लेकर काशी विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए चले गए। इन्होंने काशी में ही विजिलबिंदु के तालवन में मण्डन मिश्र तथा इनकी पत्नी से शास्त्रार्थ करके उनको परास्त किया था।

इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया तथा वैदिक धर्म को फिर से जीवित किया। इन्होंने कई बार बौद्ध धर्म के प्रणेताओं से शास्त्रार्थ कर तथा इनको शास्त्रार्थ में पराजित करके बौद्ध धर्म की मान्यताओं को भी झूठा साबित किया जिसके कारण कुछ बौद्ध धर्म के अनुयायी इन्हें अपना शत्रु मानते हैं। भारत की वैदिक परंपरा के अनुसार इन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। इन्होंने बौद्धों से कई बार शास्त्रार्थ करके इनको हराया था।

आदि गुरु शंकराचार्य जी के द्वारा प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा को पूरे भारत मे फैलाने के लिए देश के चारों दिशाओं में (1) बदरिकाश्रम, (2) शृंगेरी पीठ, (3) द्वारिका पीठ तथा (४) शारदा पीठ नामक मठों की स्थापना की गई थी। जो कि आज भी बहुत प्रसिद्ध है तथा जिन्हें आज भी वैदिक संस्कृति के अनुसार बहुत पवित्र माना जाता है। इन मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है।

इनके द्वारा वैदिक परंपरा के उपनिषदों तथा वेदांत सूत्रों पर टीकाएँ लिखी गयी जो कि आज भी बहुत प्रसिद्ध है। इसके साथ ही साथ आदि गुरु शंकराचार्य जी के द्वारा अद्वैत वेदान्त को बहुत ही मजबूत आधार प्रदान किया गया था। इसके साथ ही इन्होंने सनातन धर्म की विविध विचार धाराओं को एक सूत्र में बाँधने का भी काम किया था।

आदि गुरु शंकराचार्य जी की मृत्यु 32 वर्ष की अल्पायु में ही 831 ई0 में पाल साम्राज्य के केदारनाथ, जो कि वर्तमान में भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है, में हो गयी थी। अपने जीवन काल के इस छोटे से खंड में प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा को जीवंत करने का जो काम आदि गुरु शंकराचार्य जी ने किया है वह अद्भुत एवं अविस्मरणीय है।

प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा को नूतन जीवन देने तथा इसको देश के प्रत्येक कोने में प्रसारित करने के लिए हिंदू कैलेंडर के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य जी की जयंती, प्रत्येक वर्ष के वैशाख माह की शुक्ल पंचमी के दिन देश के सभी मठों में विशेष हवन पूजन तथा शोभा यात्रा निकाल कर मनाई जाती है।

Image Source – https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Inside_Adi_Shankara%27s_Gufa_at_Shankaracharya_Temple_(Srinagar,_Jammu_and_Kashmir).jpg

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