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ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi: हॉकी का जादूगर

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6 Min Read
ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi - हॉकी का जादूगर
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इस लेख में पढ़ें मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi. जानें महान हॉकी के जादूगर की सफलता और मोटवैशन से भरी कहानी।

Contents
ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi – हॉकी का जादूगरप्रारंभिक जीवन और शिक्षा Early Life and Educationहॉकी में ध्यानचंद की दिलचस्पी और करिअर Dhyanchand’s Hockey Career1928 एम्सटरडम ओलंपिक Historical Amsterdam Olympicsमृत्यु Death

ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi – हॉकी का जादूगर

ध्यानचंद एक महान हॉकी खिलाड़ी थे, उन्होंने अपने खेल के प्रदर्शन से पूरी दुनियां में हॉकी का नाम रोशन कर दिया और इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपने नाम को अंकित कर दिया जिसका नाम ध्यानचंद था।

जब वह खेल के मैदान में आते थे तो विरोधी टीमें पनाहे मांगने लगती थी और अपना सिर उनकी टीम के आगे झुका लेती थी। वह एक ऐसे खिलाड़ी थे, कि वे किसी भी कोण का निशाना बनाकर गोल कर सकते थे। उनकी इसी योग्यता को देखते हुये उन्हें विश्व भर में हॉकी का जादूगर भी कहते थे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा Early Life and Education

उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था। उनका असली नाम ध्यानचंद सिंह था।

कुछ समय पश्चात ध्यानचंद के पिता का स्थानान्तरण झांसी में हो गया और तब ध्यानचंद भी अपने पिता के साथ वही रहने लगे पिता का बार-बार स्थानान्तरण होने के कारण वह पढाई में ध्यान अच्छी तरह नहीं लगा पाये और उनका मन हॉकी खेलने में लगा रहा वह केवल छठी कक्षा तक ही पड़े है।

हॉकी में ध्यानचंद की दिलचस्पी और करिअर Dhyanchand’s Hockey Career

बचपन में लोग इन्हें ध्यान सिंह के नाम से पुकारा करते थे जब वह छोटे थे तो वे अपने दोस्तों के साथ मिलकर पेड़ की डाली की हॉकी बना लिया करते थे और कपड़े की गेंद बनाकर खेलते थे।

एक बार ध्यानचंद अपने पिता के साथ हॉकी का खेल देखने गये वहां उन्होंने एक पक्ष को हारता देख वह दुखी होने लगे तब वह चिल्लाकर अपने पिता से कहने लगे कि अगर मै कमज़ोर पक्ष की तरफ से खेलूँगा तो परिणाम कुछ और ही होगा।

तभी वहां खड़े एक आफिसर ने ध्यानचंद को खेल के मैदान में जाने की इजाजत दे दी। वहां जाकर उन्होंने लगातार 4 गोल किये और वहां के लोगों को आश्चर्य चकित कर दिया उस समय वह केवल 14 साल के बालक थे, उनकी इस प्रतिभा को देखकर 16 साल की उम्र में उन्हें सेना में भर्ती कर लिया गया इसके बाद भी वह अपने आपको हॉकी से अलग नहीं कर पाये।

ध्यानचंद के पहले कोच का नाम भोले तिवारी था चूँकि आर्मी में कार्यरत होने के कारण उनके पास हॉकी खेलने का समय नहीं होता था पर फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और उस समय वे रात को चाँद की रोशनी में हॉकी खेला करते थे।

ध्यानचंद हॉकी के दीवाने थे। आर्मी के साथ-साथ ही उन्होंने हॉकी में भी अपना कैरियर बनाया और 21वर्ष की उम्र में उन्हें न्यूजीलैंड जा रही भारतीय टीम में चुना गया। इस खेल में भारत ने 21 में 18 मैच जीते।

1928 एम्सटरडम ओलंपिक Historical Amsterdam Olympics

23 साल की उम्र में ध्यानचंद को 1928 में एम्सटरडम ओलंपिक में पहली वार भारतीय टीम के सदस्य के रूप में चुना गया यहाँ भारतीय टीम द्वारा खेले गये चार मैचों में 23 गोल किये और स्वर्ण पदक हासिल किया 1932 में वर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद को कप्तान बनाया गया।

15 अगस्त 1936 को हुये मैच में भारत ने जर्मनी को 8 –1 से हरा दिया और स्वर्ण पदक जीता। इस मैच को जर्मनी का हिटलर भी देख रहा था और जब खेल खत्म हुआ तो उसने ध्यान से मिलने की इच्छा जताई और उनसे मिलकर उनकी बहुत तारीफ भी की। हिटलर ने ध्यानचंद को अपनी टीम में आने के लिए भी कहा परन्तु मेजर ध्यानचंद ने पूर्ण रूप से मन कर दिया।

1932 में भारतीय टीम ने 37 मैच खेले और 338 गोल किये जिसमें से 133 अकेले ध्यानचंद ने किये थे। इनमें से 11 पर ध्यान चंद का नाम लिखा था। इंटरनेशनल मैचों में 300 गोल का रिकॉर्ड भी ध्यानचंद के खाते में ही जाता है। उन्होंने अपने हॉकी जीवन में इतने गोल किये जितने गोल खिलाड़ी अपने पूरे जीवन के दौरान नहीं कर पाते है।

उनके ऐसे करिश्मायी खेल से हालैंड में ध्यानचंद के हॉकी को तोड़कर देखा गया कि कही उसमें चुम्बक तो नहीं लगी है। जापान में उनकी हॉकी का प्रयोगशाला में परीक्षण भी हुआ कि कही इनकी हॉकी में गोंद उपयोग तो नही हुयी है।

1948 में 43 वर्ष की उम्र में मेजर ध्यानचंद आर्मी से सेवानिर्वृत्त हुये तो उसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से पुरुस्कृत किया 29 अगस्त, उनके जन्म को हम राष्ट्रिय खेल दिवस के रूप में मनाते है। राजीव गाँधी खेल रत्न पुरुष्कार, अर्जुन पुरुष्कार, गुरुद्रोनाचार्य पुरुष्कार वियना के एक स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गयी है। (भारत के मुख्य पुरस्कार व सम्मान)

जिनमें उनके चार हाथ है और चारों में स्टिक पकड़े हुये है। दिल्ली के एक स्टेडियम के नाम को उनके नाम पर रखा गया है मेजर ध्यान चंद भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा मेजर ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाडी कहा गया है।

मृत्यु Death

3 December 1979  को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली में लीवर कैंसर के कारण मेजर ध्यानचंद की मृत्यु हो गयी।

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