चैतन्य महाप्रभु की जीवनी Chaitanya Mahaprabhu Biography in Hindi
चैतन्य महाप्रभु ने वेदांत के एक स्कूल अचिंत्य-भेद-अहेदा की स्थापना की जो शक्ति निर्माण और निर्माता के संबंध में अकल्पनीय एकता और अंतर के दर्शन का प्रतिनिधित्व करते थे। यह दर्शन अन्य वैष्णव संप्रदायों से गौडिया परंपरा को अलग करता है।
एक बार की बात है। चैतन्य महाप्रभु सांप से खेल रहे थे। सांप उनके चारों और कुंडली मारकर बैठा था और वे सांप के शरीर पर हाथ फेर रहे थे। तब लोगों को विश्वास हो गया कि यह कोई महान आत्मा है। प्रभु को छोटे में पढ़ाई में कोई मन नहीं था। वे सारे शैतान लड़को के लीडर थे। वह जैसा कहते थे वे वैसा करते थे । उन दिनों हमारे भारत मै छुआ-छूत का भेदभाव फैला हुआ था।
चैतन्य महाप्रभु की जीवनी Chaitanya Mahaprabhu Biography in Hindi
जन्म
चैतन्य चरितामृत के अनुसार चैतन्य महाप्रभु का जन्म 18 फरवरी 1486 की फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक गांव में हुआ था। चैतन्य महाप्रभु के पिता सिलहट में रहते थे।
वह नामदेव में पढ़ने के लिये आये थे, फिर वह वही रहने लगे और फिर उनकी शादी हो गयी। उसके बाद उनके माता पिता की आठ लड़कियां पैदा हुयी और कोई भी जीवित न रह सकी फिर एक लड़का पैदा हुआ भगवान की कृपा से वह भी जीवित ना रहा फिर भी वृद्ध हालत में एक और बेटा पैदा हुआ।
तब उनके माता पिता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने एक पंडित को दिखाया तो पंडित ने कहा ये बच्चा एक बहुत ही महान आत्मा है। चैतन्य महाप्रभु 13 महीने अपनी माँ के पेट में रहे उनका नाम विश्म्भर रखा गया प्यार से माता-पिता ने उनका नाम निमाई रख दिया ।
एक दिन उनके पिता ने उनके स्वभाव की जाँच के लिये उनके सामने खिलोने, रूपये और भागवत गीता रख दी तो उन्होंने भगवत गीता उठा ली उनके पिता समझ गये आगे जाकर यह बच्चा कृष्णा का भक्त होगा।
आध्यात्मिकता
गौडीया सम्प्रदाय की स्थापना चैतन्य महाप्रभु ने की थी। उनके भक्त उनको भगवान श्री कृष्ण का रूप मानते थे। वे अपने भक्तों को भगवान् की भक्ति करने के बारे में सिखाते थे। वे हरे कृष्ण और हरे राम के मन्त्र के जाप के लिये प्रसिद्ध थे।
वे संस्कृत भाषा आठ सिक्सस्ताकम (भक्ति गीत) की कवितायेँ गाया करते थे। चैतन्य महाप्रभु को गौरंग और गौरा के नाम से भी जानते है। उनका जन्म नीम के पेड़ के नीचे हुआ था इसीलिए उनका नाम निमाई भी है हालाँकि इस बात के कोई सबुत नहीं है।
अपने प्रारंभिक दिनों से ही वह एक ज्ञानी मनुष्य है। उनका नाम विशंभर भी था। वे पढ़ने में बहुत होशियार व्यक्ति थे। चैतन्य का अर्थ है – ज्ञान और महा का अर्थ है – महान, प्रभु का अर्थ है महाप्रभु।
बंगाल लौटने पर वह नादिया के वैष्णव समूह के प्रसिद्ध नेता के रूप में बहुत जल्दी एक प्रमुख धार्मिक प्रचारक बन गये। उन्हें जल्द ही केशव भारती द्वारा संन्यास आदेश में प्रवेश मिला।
एक संन्यासी बनने के बाद उन्होंने पूरे भारत में भगवान कृष्ण के नाम फैलाने वाले कई स्थानों पर जाकर यात्रा की। उन्होंने शांतिपुरा में अद्वैत प्रभु के घर का भी दौरा किया। कई अनुयायी, कृष्णा चैतन्य के मित्र और परिवार के सदस्य-निमाई के रूप में अब भी जानते है और उनसे मिलने भी गए थे।
कृष्णा चैतन्य ने पूरे भारत में भगवान के पवित्र नामों के मंडल का जश्न-कृष्णा शंकराना को लोकप्रिय बनाया। वह भक्ति योग के वैष्णव विद्यालय (अर्थात् ईश्वर से प्रेम भक्ति) के समर्थक थे और उनके अनुयायियों और भक्तों द्वारा विष्णु के दयालु अवतार के रूप में सम्मानित थे।
चैतन्य महाप्रभु ने बंगाल और ओडिशा में सांस्कृतिक विरासत पर गहरा प्रभाव डाला। 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में कलाचंद विद्यालंकर ने बंगाल में अपने उपदेशों को लोकप्रिय बना दिया और आधुनिक समय में भी कई लोग कृष्णा के अवतार के रूप में उन्हें सम्मानित करते हैं। 1957 में, कार्तिक चट्टोपाध्याय ने ‘निलाचाले महाप्रभु‘ नामक चैतन्य महाप्रभु पर एक बंगाली जीवनी फिल्म का निर्देशन किया।
निजी जीवन व मृत्यु
14 या 15 साल की उम्र में, उनकी शादी नादिया के वल्लभचार्य की पुत्री लक्ष्मीदेवी से हुई थी। उन्होंने कुछ वर्षों के बाद पारिवारिक जीवन छोड़ दिया तब उन्होंने तपस्या की शुरुआत की। वह 14 जून 1534 को ओडिशा के पुरी में 48 वर्ष की उम्र में अपने स्वर्गीय निवास के लिये चले गये।
कथा
बहुत समय पहले की बात है एक बार एक गरीब इंसान ने अपने हांथो की रेखाये दिखाई तो उस ज्योत्षी ने उसकी रेखाये बहुत अच्छे से देखी और सर्वजन नामक ज्योत्षी चौक गये और उन्होंने उस आदमी के पास जाकर पूछा तुम दुखी क्यों हो तुम्हारी राशि के हिसाब से तुम्हारे पिता कुछ छुपा हुआ धन तुम्हारे लिये छोड़ गये है।
वह तुम्हे बताने से पहले ही ख़त्म हो गये है। अब तुम उस धन को खोजों और खुश रहो। सर्वजन ने उसको बताते हुये कहाँ अपने घर के दक्षिण में मत खोजना नहीं तो तुम्हे कुछ जहरीले मकड़े का सामना करना होगा।
उत्तरी दिशा में एक बड़ा सांप तुम पर हमला कर सकता है। पश्चिम दिशा में भी कुछ नही मिलेगा बल्कि बुरी आत्माओं का सामना करना पड़ेगा और अगर तुम अपने घर के पूर्व दिशा की ओर धन खोजोगे तो भाग्य तुम्हारा पूरा साथ देगा। चैतन्य महाप्रभु ने इस कहानी के द्वारा बताया है कि कितनी भी परेशानियां आ जाये पर हमें कभी ईश्वर को नहीं भूलना चहिये वह हमेशा हमारी रक्षा करता है।