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बोधिधर्मन का इतिहास व कहानी Bodhidharma History Story in Hindi

Moral Stories
8 Min Read
बोधिधर्मन का इतिहास व कहानी Bodhidharma History Story in Hindi
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आज के इस लेख में हमने आपको बोधिधर्मन का इतिहास व कहानी बताया है Bodhidharma History Story in Hindi

Contents
बोधिधर्मन : बोधिधर्म बौद्धाचार्य का इतिहास व कहानी Bodhidharma History Story in Hindiबोधिधार्मन कौन थे? Who is Bodhidharma and His Story in Hindiबोधिधर्मन और कुंग फू का इतिहास Bodhidharma and the History of Kung Fuबोधिधर्मन इतिहास और पौराणिक कथा Bodhidharma History and Legendबोधिधर्मन की मृत्यु Bodhidharma Death

बोधिधर्म बौद्धाचार्य बोधिधर्मन कौन थे?
बधिधर्म बौद्धाचार्य की रहस्यमयी कथा पढना चाहते थे?

बोधिधर्मन : बोधिधर्म बौद्धाचार्य का इतिहास व कहानी Bodhidharma History Story in Hindi

नमस्कार दोस्तों आज हम इस पोस्ट में एक महान बौद्ध भिक्षु, बोधिधर्म की रहस्यों और तथ्यों से भरे हुए कहानी व इतिहास को थोड़ा औसे अच्छे समझेंगे। उनके जीवनी के विषय में बहुत कम ही कहानी मौजूद है परंतु बाद में तथ्यों के आधार पर उसमे बहुत सारी चीज़ों से जोड़ा गया है।

पढ़ें : भगवान बुद्ध का जीवन परिचय

बोधिधार्मन कौन थे? Who is Bodhidharma and His Story in Hindi

बोधिधर्मन या बोधिधर्म एक प्राचीन बौद्ध भिक्षु थे जो 5वी से 6वी सदी में रहा करते थे। पारंपरिक रुप से बोधिधर्म को ‘चान बौद्ध धर्म’ को चीन में लाने वाले प्रथम व्यक्ति या संचारित कर्ता माना जाता है।

साथ ही होने चीन का प्रथम कुलपति भी माना जाता है। चीन की पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्होंने शाओलिन मठ के भिक्षुओं को शारीरिक प्रशिक्षण देना भी शुरू किया था जो बाद में शाओलिन कुंग फू के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जापान में धरुमा के नाम से बोधिधर्मन को जाना जाता है।

मुख्य चीनी स्रोतों के अनुसार बोधिधर्मन पश्चिमी क्षेत्रों से आए थे जोगी माना जाता है हो सकता है मध्य एशिया का भाग या फिर कोई भारतीय उपमहाद्वीप और फारसी मध्य एशियाई भाग से। अगर हम  बोधिधर्मन के पौराणिक चित्र को देखे हैं तो उसमें  बोधिधर्मन को एक अशुभ, उदासीन, दाढ़ी वाले, चौड़ी आंखों वाले गैर चीनी व्यक्ति के रुप में दर्शाया गया है।

आधुनिक काल के लेखक के अनुसार बोधिधर्मन को 5वीं सदी के समय का वर्णन किया गया है। चीनी सभ्यता और पौराणिक कथाओं के अलावा भी कई अन्य परंपराओं में भी बोधिधर्मन का उल्लेख किया गया है।

अलग-अलग जगहों में अलग-अलग प्रकार से बोधिधर्मन के विषय में उल्लेख किया गया है।पहले के कुछ लेखों में बोधिधर्मन का होना लिऊ यु के गीत ‘न्यू सोंग डायनेस्टी’ के समय का वर्णन किया गया है। कुछ अन्य जगहों में बोधिधर्मन का होना ‘लियांग डायनेस्टी’ के समय का माना गया है और कुछ लोगों का कहना है बोधिधर्मन ‘उत्तरी वी’ के क्षेत्रों में रहते थे।

बोधिधर्मन के उपदेश और शिक्षाऐं खासकर ध्यान और लंकावतार सूत्र पर आधारित हुआ करते थे। The Anthology of the Patriarchal Hall 952 किताब के अनुसार बोधिधर्मन को 28वां बौद्ध गुरु या प्रधान माना गया है जो सीधे बोधिधर्मन को गौतम बुद्ध के साथ जोड़ता है।

बोधिधर्मन और कुंग फू का इतिहास Bodhidharma and the History of Kung Fu

वैसे तो चीन में लड़ाई शैलियों की परंपरा बहुत पुरानी है परंतु माना जाता है ज्यादातर आधुनिक  प्रणालियां बोधिधर्मन के शिक्षाओं की देन है।

इतिहास में इसके विषय में पूरा सटीक विवरण तो नहीं है परंतु संक्षिप्त विवरण के अनुसार माना जाता है कि बोधिधर्मन 6वीं सदी के दौरान शाओलिन मंदिर गए थे। वहां उन्होंने कई भिक्षुओं को कई प्रकार के लड़ाई अभ्यास और व्यायाम को सिखाया जिनकी मदद से आधुनिक युग के कुंग फू का विकास हुआ।

बचे हुए पौराणिक सबूतों के आधार पर अगर हम ध्यान दें तो पता चलता है कि सम्राट हुआंग तिई ने चीओ ति (या गो-टी) नामक एक बुनियादी लड़ाई प्रणाली का इस्तेमाल किया जो कि 2,674 ईसा पूर्व के आसपास था। यह शुआई चीओ में विकसित हुआ, जो जूडो के जैसा ही है और कोहनी और घुटने की मदद से तेजी से हमला करने का तरीका है।

इन शुरुआती प्रणालियों को ख़ासकर सेना में रहने वाले सैनिकों के युद्ध कौशल का विकास करना था। साथ ही जो लोग लंबे समय तक इससे जुड़े रहते थे वो बाद में रिटायर हो कर किसी ना किसी मठ में रहकर उन्हीं प्रशिक्षण तकनीकों का इस्तेमाल करके स्वस्थ और तंदुरुस्त रहते थे।

लगभग 600 ईसा पूर्व, कन्फ्यूशियस ने कहा कि रोजमर्रा की जिंदगी और उनके समकालीन लाओ त्ज़ू में मार्शल आर्ट को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताओवाद नामक एक दार्शनिक प्रणाली तैयार की गयी थी।

इन दोनों की शिक्षाओं को उम्र के माध्यम से सौंप दिया गया और वे चीन की मार्शल आर्ट और बाद में पड़ोसी देशों के साथ जुड़ गए। परंतु आधुनिक युग का मार्शल आर्ट तब शुरू हुआ जब 527 सीई के आसपास  भारतीय भिक्षु  बोधिधर्मन शाओलिन मंदिर में अपने कुछ अन्य भिक्षुओं के साथ  कुंगफू एक नए तरीके को सिखाया। बोधिधर्मन को चीन में ‘ता मो’ के नाम से जाना जाता है।

बोधिधर्मन इतिहास और पौराणिक कथा Bodhidharma History and Legend

‘ता मो’ या ‘बोधिधर्मन’ चीन के सम्राट से मिलने गए थे। वह एक पवित्र व्यक्ति थे विश्वास था कि उसके नाम पर दूसरों के द्वारा किए जाने वाले अच्छे कार्यों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। बाद में, उन्होंने प्राचीन भारतीय भाषा, संस्कृत, बौद्ध धर्मग्रंथों को चीनी में अनुवाद करने के लिए कहा ताकि आम लोगों उन चीजों का अभ्यास कर सकें।

परंतु बोधिधर्मन धर्मों के इस अनुवाद और शाओलिन मंदिर में होने वाले संस्कृत अनुवाद से असहमत थे। शासक या सम्राट के बातों से असहमत होने के कारण उन्हें मंदिर के प्रांगण में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। अपनी योग्यता को साबित करने के लिए बोधिधर्मन पास के एक दीवार के सामने, एक गुफा मैं 9 साल तक ध्यान लगाया।

बोधिधर्म के इतिहास की कहानी वास्तविकता पर कितनी आधारित है, वास्तव में कभी भी इसका ज्ञात नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन हम कह सकते हैं कि उनके बारे में कई पौराणिक कथाएं पैदा हुई हैं और वे सब स्वयं कुंग फू के संस्कृति के विकास का हिस्सा बन गए हैं।

कुछ कहानियों बताती है कि उन्होंने सचमुच गुफा की दीवारों में अपनी तेज़ आंखों की शक्ति से छेद कर दिया था और कुछ लोगों का मानना है कि ध्यान करते समय, सूर्य ने सीधे चट्टान को जला दिया।

धीरे धीरे उनके तब और परिश्रम को देखते हो मंदिर के अन्य भिक्षु उनके लिए खाना पीना लाने लगे और धीरे-धीरे उनके बीच में एक सकारात्मक रिश्ता बन गया। साथी ही सभी बोधिधर्मन के विचारों से प्रभावित होने लगे और  उनसे प्रशिक्षण लेने लगे।

बोधिधर्मन जिस बौद्ध ज्ञान को बांटा जिसे चीन में ‘चान बौद्ध धर्म’ के नाम से जाना जाने लगा।  ना सिर्फ चीन बल्कि जापान मैं भी बोधिधर्मन  के मार्शल आर्ट  का ज्ञान और तरीका फैला जिससे जैन के नाम से जाना जाता है।

बोधिधर्मन की मृत्यु Bodhidharma Death

बोधिधर्मन की रहस्यमई मृत्यु 540 ई, को शाओलिन मठ, झेंगझौ, चीन में हुई थी।

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