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मदर टेरेसा का जीवन परिचय Biography of Mother Teresa in Hindi

Moral Stories
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मदर टेरेसा का जीवन परिचय Biography of Mother Teresa in Hindi
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मदर टेरेसा का जीवन परिचय Biography of Mother Teresa in Hindi

Contents
मदर टेरेसा का जीवन परिचय Biography of Mother Teresa in Hindiप्रारंभिक जीवन Early Lifeमदर टेरेसा की निस्वार्थ सेवा Mother Teresa’s Selfless Service to peopleमदर टेरेसा के पुरस्कार Mother Teresa Awardsमदर टेरेसा की मृत्यु Mother Teresa Death

मदर टेरेसा या ‘एग्नेस गोंकशे बोजशियु’ एक महान महिला और रोमन कैथोलिक नन थी, जिन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। 1979 में उन्होंने अपने महान कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार जीता था।

मदर टेरेसा अक्सर कहती थी सारा विश्व ही मेरा घर है। मदर टेरेसा के महान कार्य निस्वार्थ सेवा का सबसे बड़ा उदहारण हैं। उनकी जीवन कहानी हर किसी को बिना किसी स्वार्थ के एक दुसरे को मदद करने की प्रेरणा देते हैं।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय Biography of Mother Teresa in Hindi

प्रारंभिक जीवन Early Life

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मैसेडोनिया के स्कोप्जे में हुआ था। उनका पूरा नाम एग्नेस गोंकशे बोजशियु था। उनके जन्म के समय स्कोप्जे, तुर्क साम्राज्य के भीतर स्थित था। यह पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में तुर्कों द्वारा नियंत्रित एक विशाल साम्राज्य था।

मदर टेरेसा ने अपना सारा जीवन गरिबों की सेवा में लगा दिया उन्होंने अपने जीवन का अधिकतम समय चर्च में गुजार कर और लोगों कि सेवा में निकाल दिया। जब एग्नेस नौ वर्ष की थी, तो उनके पिता की मृत्यु हो जाने पर उनका सुखद आरामदायक घनिष्ठ पारिवारिक का जीवन मुश्किलों से भर गया था।

तब उन्होंने स्कोप्जे के पब्लिक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। उन्होंने धार्मिक हितों को समाज के सदस्य के सामने रखा, जो विदेशी मिशनों पर केंद्रित थे (वे ऐसे समूह थे जो विदेशों की धार्मिक मान्यताओं को फैलाने के लिए यात्रा करते थे)। मदर टेरेसा ने बारह वर्ष की उम्र में यह महसूस किया कि उन्होने गरीबों की मदद करने के लिए जन्म लिया है।

जब वह अठारह वर्ष की थीं तो मदर टेरेसा ने आयरलैंड नन के समुदाय में शामिल होने के लिए घर छोड़ दिया, जिन्होंने भारत कलकत्ता में एक मिशन शुरू किया था। उन्होने डबलिन,आयरलैंड में प्रशिक्षण किया बाद में उन्होंने डबलिन में सिस्टर ऑफ़ लोरेटो के साथ संपर्क किया जहाँ उन्हें लिसीयूज़ के एक सेंट टेरेसा के नाम पर ही मदर टेरेसा का नाम दिया गया और 1928 दार्जिलिंग में उन्होंने अपनी पहली धार्मिक शपथ ली।

मदर टेरेसा की निस्वार्थ सेवा Mother Teresa’s Selfless Service to people

मदर टेरेसा ने सबसे पहले कार्यकलापों में कलकत्ता में लड़कियों के हाईस्कूल में पढ़ाया और अंत में वह प्रिंसिपल के रूप में वहाँ सेवा करने लगी, हालांकि स्कूल झोपडियों (बहुत गरीब वर्ग) के बहुत करीब था, लेकिन उनके स्कूल के छात्र मुख्य रूप से अमीर थे। वे रोज वहां से उन गरीबों को देखा करती थी और उनको देखकर वे बहुत दुखी होती थी।

मदर टेरेसा के आंतरिक मन में उन लोगों की सेवा की भावना पैदा हुई और उन्होंने कॉन्वेंट का जीवन (नन का जीवन) छोड़ दिया और वह गरीबों की सेवा करने लगी। मानव जाति की  उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में ‘संत’ की उपाधि से नवाजा गया जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन सिटी, यूरोप से हुई।

इस दौरान वह डबलिन में अपना कार्य समाप्त करके कलकत्ता आ गई और वहां उन्होंने गरीबों की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया। 15 वर्ष तक उन्होंने भूगोल और इतिहास पढ़ाया और उसके बाद वे सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाने लगी, उन्होंने गरीब लोगों को पढ़ाने में बहुत मेहनत की। गरीबों के साथ काम करने के लिये,मदर टेरेसा ने पटना में अमेरिकी चिकित्सा मिशनरी बहनों के साथ गहन चिकित्सा प्रशिक्षण लिया।

कलकत्ता में उन्होंने मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों को इकट्ठा किया और उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से जल्दी ही वित्तीय सहायक और स्वयंसेवकों दोनों को ही आकर्षित किया।

1950 में उनके समूह को मिशनरी ऑफ चैरिटी कहा जाता था जिसकी उन्होंने शुरुवात की थी। इसमें सदस्यों ने गरीबी, पवित्रता (शुद्धता), और आज्ञाकारिता की परंपरागत प्रतिज्ञाएं लीं, इसके आलावा उन्होंने चौथी शपथ दी कि वह गरीबों को मुफ्त सेवा प्रदान करेंगी।

मिशनरी ऑफ चैरिटी ने काफी प्रचार किया और मदर टेरेसा ने अपने काम को लाभ पहुंचाने के लिए इसका इस्तेमाल किया। 1957 में उन्होंने कुष्ठ रोगियों (कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों को एक भयानक संक्रामक बीमारी से पीड़ित) की सहायता की और धीरे-धीरे कलकत्ता में नौ प्राथमिक विद्यालयों के चलते अपने शैक्षणिक कार्य का विस्तार किया।

1979 में, मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया और वे धर्मार्थ कार्य से  निस्वार्थ काम का प्रतीक बन गयी। 2016 में, मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा संत टेरेसा के रूप में जाना गया।

उन्होंने कलकत्ता में दो विशेष रूप से दर्दनाक अवधि का अनुभव किया। पहला 1943 का बंगाल अकाल था और दूसरा भारत के विभाजन से पहले 1946 में हिंदू/ मुस्लिम हिंसा थी। 1948 में, उन्होंने कलकत्ता के गरीबों के साथ रहने के लिए पूर्णकालिन कॉन्वेंट को छोड़ दिया।

उनका काम और नाम दुनिया भर में फैल गया। 2013  तक 130 से अधिक देशों में 700 मिशन उनके पथ पर चलने लगे थे। कई बीमारियों वाले लोगों के लिए अनाथाश्रम और धर्मशालाओं को भी बनाया गया, इस तरह उनके काम का दायरा भी बढ़ गया। जब लोगों ने मदर टेरेसा से पूछा गया कि कैसे विश्व शांति को बढ़ावा देना है, तो उन्होंने जवाब दिया, “घर जाओ और अपने परिवार से प्यार करो”।

अपने जीवन के पिछले दो दशकों में, मदर टेरेसा को विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने के अपने मिशन को पूरा करने के लिये उन्हें कोई भी नहीं रोक सकता था।

अपनी आखिरी बीमारी तक वह मिशनरी ऑफ चैरिटी की विभिन्न शाखाओं में दुनिया भर में यात्रा करती रही। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने ब्रोंक्स, न्यूयॉर्क में राजकुमारी डायना से मुलाकात की। परन्तु उसके एक सप्ताह के भीतर ही उनकी मृत्यु हो गयी।

मदर टेरेसा के पुरस्कार Mother Teresa Awards

  • इंग्लैंड की महारानी ने “आर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर”
  • इंग्लैंड के राजकुमार फिलिप द्वारा “टेम्पलस”
  • पॉप छठे द्वारा “पॉप शांति”
  • भारत सरकार द्वारा “पद्म विभूषण”
  • और “नोबेल शांति पुरस्कार”

मदर टेरेसा की मृत्यु Mother Teresa Death

मदर टेरेसा की मृत्यु  5 सितम्बर 1997  को  हुई। उनकी अंतिम यात्रा में विश्व के अनेक देशो के लोग शामिल हुये ।

Featured Image –  1986 Túrelio (via Wikimedia-Commons)

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