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गोपाल कृष्ण गोखले की जीवनी Biography of Gopal Krishna Gokhale in Hindi

Moral Stories
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गोपाल कृष्ण गोखले की जीवनी Biography of Gopal Krishna Gokhale in Hindi
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गोपाल कृष्ण गोखले की जीवनी Biography of Gopal Krishna Gokhale in Hindi

Contents
आरंभिक जीवन Earlier lifeकरियर Careerसर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना मृत्यु Deathगोखले जी के नाम पर कुछ प्रमुख स्थान

गोपाल कृष्ण गोखले जी भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और एक महान मार्गदर्शक थे। इन्होने भारत को ब्रिटिश के खिलाफ लड़ने में अपनी बहुत ही बड़ी भूमिका निभाई है। ये एक ,महान सामाजिक कार्यकर्ता तथा एक बहुत ही अच्छे राजनेता थे।

गोपाल कृष्ण गोखले कांग्रेस पार्टी के वरिष्ट नेता थे। इसके अलावा इन्होने सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के संस्थापक भी है। गोपाल कृष्ण गोखले जी कांग्रेस के नरमपंथी नेताओ में एक प्रसिद्ध नेता थे।

इनके समझ और अधिकारपूर्वक बहस की क्षमता को देखते हुए इनको ग्लेडस्टोन भी कहा जाता था। इनके अनुसार भारत में तकनीकी शिक्षा और वैज्ञानिक शिक्षा की आवश्यकता जरुरी है। गोपाल कृष्ण गोखले जी महात्मा गाँधी जी राजनैतिक भी कहा जाता है।

आरंभिक जीवन Earlier life

गोपाल कृष्ण गोखले जी का जन्म 9 मई सन 1866 को रत्नागिरी जिले के तालुका गुहागर के कोथलुक नामक गावं में हुआ।  वर्तमान समय में ये जगह बोम्बे में आता है। इनके पिता का नाम कृष्ण राव और माता का नाम वालूबाई था।

इनके पिता पेशे से किसान थे। गोखले जी एक गरीब परिवार के थे और इनके माता पिता चाहते थे कि वो अगर अच्छे से पढ़ लिख ले, तो उनको अंग्रेजो के शासन में क्लर्क या और कोई पद मिल सकती है।

गोखले जी के कम उम्र में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई जिससे गोखले जी बचपन से ही कर्मठ और अपनी पूरी निष्ठा से किसी भी काम को करते थे। गोखले जी ने सन 1884 में Elphinstone college से अपनी स्नातक की पढाई पूरी की।

गोखले जी चितपावन ब्राह्मण परिवार से थे। इन्होने दो शादियाँ की थी, पहली शादी जोकि सन 1880 में सावित्रीबाई से हुआ लेकिन गोखले जी की पहली पत्नी किसी असाध्य रोग से ग्रसित थी, जिसके चलते सन 1887 में गोखले जी दूसरी शादी हुई।  

इनकी पत्नी ने दो बेटियों को जन्म दिया और सन 1899 में इनकी दूसरी पत्नी की मृत्यु हो गई। गोखले जी ने इसके बाद शादी नही की। गोखले जी की बेटियों का पालन पोषण इनके रिश्तेदारों ने किया।

करियर Career

गोखल जी ने अपनी स्नातक पूरी करने के बाद, सन 1885 में गोखले पुणे चले गए और डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के अपने सहयोगियों के साथ फर्ग्यूसन कॉलेज के संस्थापक सदस्यों में शामिल हो गए।

गोपाल कृष्ण गोखले ने फर्ग्यूसन कॉलेज को अपने जीवन के करीब दो दशक दिए और कॉलेज के प्रधानाचार्य बने। इस दौरान वो महादेव गोविन्द रानाडे के संपर्क में आये। रानाडे एक न्यायाधीश, विद्द्वान और समाज सुधारक थे जिन्हे गोखले ने अपना गुरु बना लिया। गोखले ने पूना सार्वजनिक सभा में रानाडे के साथ काम किया और उसके सचिव बन गए।  

सन 1889 ने गोखले जी राष्ट्रीय कोंग्रेस के सदस्य बने और चूकी गोखले जी गरीब परिवार से हे इसलिए वो लोगो की परेशानियों को समझते थे और उनके समाधान भी निकलते थे। कोंग्रेस में काम करते समय ही इनकी मुलाकात बालगंगाधर तिलक जी से हुई।

तिलक जी और गोखले जी में बहुत सी समानता थी और उनकी सोच और कार्य को देखते हुए उनको राष्ट्रीय कांग्रेस के ज्वाइंट सेक्रेटरी बना दिए गए। गोखले जी अफ्रीका गए और वहां गांधी जी से मिले। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की भारतीय समस्या में विशेष दिलचस्पी ली।

अपने चरित्र की सरलता, बौद्धिक क्षमता और देश के प्रति दीर्घकालीन स्वार्थहीन सेवा के लिए उन्हें सदा सदा स्मरण किया जाएगा। वह भारत लोक सेवा समाज के संस्थापक और अध्यक्ष थे। उदारवादी विचारधारा के वह अग्रणी प्रवक्ता थे।

सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना

अफ्रीका से वापस आने के बाद जब महात्मा गांधी भी राजनीति में आ गये, तब गोखले जी के निर्देशन में सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना की। इस समय गोखले जी कोंग्रेस के प्रेसिडेंट थे। सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना के पीछे केवल और केवल एक ही कारण था और वो था।

भारतियों को शिक्षित करना और जब लोग शिक्षित होने लंगेगे तो वो अपने देश और अपने समाज की जिमेदारियों को समझेंगे और अपने  कार्यो को करने में किसी को भी दिक्कत नही होगी। कुछ समय बाद इस संस्था ने कई कॉलेज की स्थापना भी ताकि किसी भी भारतियों को किसी भगी प्रकार की दिक्कत न हो। ये सोसाइटी अभी भी कार्यरत है लेकिन अब इसमें सदस्यों की संख्या बहुत ही कम रह गई है।

‘फूट-डालो और शासन करो’ की नीति के तहत वायसराय लार्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल का विभाजन की घोषणा की, जिससे भारतियों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरे देश में स्वदेशी आन्दोलन शुरू कर दिया। बंगाल से लेकर देश के अन्य हिस्सों में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी के स्वीकार का जबर्दस्त आन्दोलन चल पड़ा।

एक तरफ जहां बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्र पाल और अरविन्द घोष जैसे गरम दल के नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और दूसरी तरफ नरम दल से गोपाल कृष्ण गोखले ने इसको आगे बढाया।

उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के साथ ही देश में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ भी आंदोलन चलाया। गोखले जी ने हमेशा ही हिन्दू और मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे। गोखले की प्रेरणा से ही गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के ख़िलाफ आंदोलन चलाया। गोपाल कृष्ण गोखले जी गाँधी जी के साथ साथ मोहम्मद अली जिन्ना के भी राजनैतिक गुरु थे।

मृत्यु Death

गोपाल कृष्ण गोखले जी ने अपनी जिन्दगी के अंतिम कुछ वर्षो में राजनैतिक कार्यों में बहुत ही सक्रिय थे। जिसमे इन्होने अपनी विदेश यात्रा की। और विदेशो में होने वाले आन्दोलनों में भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया।

इनके द्वारा स्थापित सर्वेन्ट्स ऑफ़ इण्डिया सोसाइटी में भी कार्य करते रहे और देश के विकास और उत्थान के लिए इन्होने अपना पूरा योगदान दिया और इसके साथ साथ गोखले जी ने भारत को अंग्रेजो से आजाद करवाने के लिए बहुत से आन्दोलनों में भी भाग लिया।

गोखले जी को मधुमेह और दमा की  बीमारी थी जिसके चलते गोखले जी का 19 फ़रवरी सन 1915 में मात्र 49 साल की उम्र में ही इनकी मृत्यु हो गई। आज भी हम लोग गोपाल कृष्ण गोखले जैसे महान व्यक्तियों को याद करते है और उनसे हम हमेशा ही कुछ न कुछ सिखने की कोशिश करते है।   

गोखले जी के नाम पर कुछ प्रमुख स्थान

  1. गोखले इंस्टिट्यूट ऑफ़ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, पुणे
  2. गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज, कोलकाता
  3. गोखले हॉल, चेन्नई
  4. गोखले सेंटेनरी कॉलेज, अंकोला
  5. गोपाल कृष्ण गोखले कॉलेज, कोल्हापुर
  6. गोखले रोड, मुंबई
  7. गोखले रोड, पुणे
  8. गोखले इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक अफेयर्स, बंगलोर
  9. गोखले होस्टल [ऑफ़ मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय] भोपाल

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