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श्री भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद – जीवनी A. C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada Biography in Hindi

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12 Min Read
श्री भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद - जीवनी A. C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada Biography in Hindi
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श्री भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद – जीवनी A. C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada Biography in Hindi (Srila Prabhupada Motivation Life Story)

Contents
जन्म एवम प्रारंभिक शिक्षाकार्य‘इस्कॉन’ की स्थापनानिर्वाण Deathप्रेरक के रूप में Srila Prabhupada Quote

दोस्तों आज हम बात करेंगे ऐसे सन्यासी की, जिसने प्रेम, श्रद्धा और अपनी अथाह लगन से लोगो का मन परिवर्तित कर के विश्व में अपना एक नया कीर्तिमान कायम किया, और भारतीय सभ्यता को विश्व के कोने कोने में सबके सामने उजागर किया। 

उनका नाम है अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (Srila Prabhupada)। जिनको इस्कोन मंदिर के संस्थापक के रूप में भी जाना जाता है, आज जानेंगे की कैसे इन्होंने अकेले पूरे विश्व में अपने ज्ञान को फैला कर लोगो को नई जिंदगी एवं प्रेरणा दी, और लोगो के जीवन से अंधकार निकालकर ज्ञान का प्रकाश भरा। तो शुरू करते है-

(wiki of A. C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada Biography in Hindi)

जन्म एवम प्रारंभिक शिक्षा

अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1 सितम्बर 1896 ई वीं सदी में जन्माष्टमी के दूसरे दिन कलकत्ता के एक बंगाली परिवार में, सुवर्ण वैष्णव के यहां हुआ था। इन्हें अभय चरण के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है निडर और जो भगवान कृष्ण के चरणों की शरण लेता है। 

नंदोत्सव पर जन्म होने के कारण इन्हें नंदू लाल भी कहा जाता था। पिता का नाम ‘गौर मोहन डे’ था, जो एक एक कपड़ा व्यापारी थे, और माता का नाम ‘रजनी’ था, जो एक गृहिणी थी। पिता ने, बेटे अभय चरण का पालन पोषण एक कृष्ण भक्त के रूप में किया था। बचपन में बच्चों के साथ खेलने के वजाए, वो मंदिर जाना पसंद करते थे। 14 साल की उम्र में ही इनकी माता का देहांत हो गया।

22 साल की उम्र में पिता द्वारा इनका विवाह 11 साल की राधा रानी देवी से करा दिया गया, विवाह के समय इनका फार्मेसी का व्यवसाय था। सन 1922 में इनकी मुलाकात एक प्रसिद्घ दार्शनिक भक्ति सिद्धांत सरस्वती से हुई, जो 64 गौडीय मठ (वैदिक विद्यालय) के संस्थापक थे।

इसके ग्यारह वर्ष बाद 1933 में स्वामी जी ने प्रयाग में उनसे विधिवत दीक्षा प्राप्त की। यह अपने गुरु का बहुत आदर सम्मान करते थे, और उनके दिए गए आदेश को पूरा करने के लिए जी जान से मेहनत करते थे।

इन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए चलाए जाने वाले असहयोग आंदोलन में भी गांधी जी का साथ दिया। 

इसके पश्चात वृन्दावन धाम आकर बड़ी ही लगन और श्रद्धा से कृष्ण भक्ति में लगे रहे।यह ऐतिहासिक श्री राधा दामोदर मन्दिर में ही रहने लगे और वहीं स्वामी जी अनेक वर्षों तक गंभीर अध्ययन एवं लेखन में संलग्न रहे।

कार्य

स्वामी जी भक्ति सिद्धांत ठाकुर सरस्वती के शिष्य थे, जिन्होंने स्वामी जी को अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया, और कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। क्योंकि अन्य देशों का ज्ञान तो हमारे देश मे आ रहा है, लेकिन हमारे देश का ज्ञान कही और नही जा पा रहा है। 

उसके पश्चात इन्होंने अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए पश्चिमी जगत में ज्ञान पहुँचाने का काम किया, एवं गुरु की आज्ञा का पालन करने के लिए, उन्होंने 59 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे। आज पूरे विश्व के लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने है, और हिन्दू धर्म के भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता में जो आस्था है उसका असली श्रेय स्वामी प्रभुपाद जी को ही जाता है। इन्होंने ही कृष्ण भक्ति को पूरे विश्व मे अनेक भाषाओं में रूपांतरित करके विश्व मे फैला दिया ।

इन्होंने आजीवन श्रीमद्भग्वद्गीता के ज्ञान का अन्य भाषा मे रूपान्तर जारी रखा एवं संपादन, टंकण और परिशोधन (यानि प्रूफ रीडिंग) का काम स्वयं किया। कहा जाता है इन्होंने स्वयं निःशुल्क प्रतियाँ भी बेची जिससे सभी लोगो तक इसका प्रचार हो सके। साथ ही श्रीमद भगवत पुराण का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी इन्होंने ही किया।

आज भारत से बाहर विदेशों में हजारों महिलाओं को साड़ी पहने, चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है। लाखों ने मांसाहार तो क्या चाय, कॉफी, प्याज, लहसुन जैसे तामसी पदार्थों का सेवन छोड़कर शाकाहार शुरू कर दिया है।

वे लगातार ‘हरे राम-हरे कृष्ण’ का कीर्तन भी करते रहते हैं। इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिर व विद्यालय बनवाये हैं। इस्कॉन के अनुयायी विश्व में गीता एवं हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।

श्री भक्तिवेदांत प्रभुपाद स्वामी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनकी पुस्तकें हैं। भक्तिवेदांत स्वामी ने 60 से अधिक संस्करणों का अनुवाद किया। साथ ही वैदिक शास्त्रों – भगवद गीता, चैतन्य चरितामृत और श्रीमद्भगवतम् – का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया।

इन पुस्तकों का अनुवाद 80 से अधिक भाषाओं में हो चुका है और दुनिया भर में इन पुस्तकों का वितरण हो रहा है । आंकड़ों के अनुसार – अब तक 55 करोड़ से अधिक वैदिक साहित्यों का वितरण हो चुका है ।

श्री प्रभुपाद के ग्रंथों की प्रामाणिकता, गहराई और उनमें झलकता उनका अध्ययन अत्यंत मान्य है। कृष्ण को सृष्टि के सर्वेसर्वा के रूप में स्थापित करना और अनुयायियों के मुख पर “हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे” का उच्चारण सदैव रखने की प्रथा इनके द्वारा स्थापित हुई।

न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा धीरे धीरे पूरे विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। कई देश हरे रामा-हरे कृष्णा के पावन भजन से गुंजायमान होने लगे। अपने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति सद्भावना रखने के कारण इस मंदिर के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह मंदिर स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के अथक प्रयासों के कारण दस वर्ष के कम समय में ही पूरे विश्व मे लगभग 108 मंदिरों का निर्माण हो चुका था। 

‘इस्कॉन’ की स्थापना

जब सन 1965 में यह मालवाहक जहाज़ से पहली बार लगभग 70 साल की उम्र में न्यूयॉर्क नगर में पहुचे तो उनके पास उस समय केवल 7 डॉलर ही थे। 32  दिनों की यात्रा के दौरान उन्हें 2 बार हार्ट अटैक भी आये। जब यह न्यूयॉर्क शहर पहुचे तो उस समय वियतनमी और न्यूयॉर्क का युद्ध चल रहा था। 

जिसके कारण हिप्पी आ गये थे (जो नंगे रोडों पर घूमते, एवं नशा करते थे) इन सब से वहां की सरकार परेशान हो गयी थी। तभी स्वामी जी ने सोचा क्यों ना इन्ही से शुरुआत की जाये, स्वामी जी ने इनके लिए कीर्तन शुरू किये लेकिन ये हिप्पी इनका अपमान करते थे, परेशान करते थे, लेकिन फिर भी स्वामी जी इनके लिए सुबह शाम भोजन बनते थे, और कथा सुनाते थे। 

धीरे धीरे ये लोग परिवर्तित हो गये और भगवत गीता का पाठ करने लगे , अमेरिकन सरकार भी इनसे खुश हो गयी थी। यहां लगभग उनके 10,000 शिष्य बन गये थे, जिनको स्वामी जी ने प्रचार के लिए विश्व के भिन्न स्थानों पर उपदेश एवं ज्ञान देने के लिए भेजा। 

इन्होंने लगभग 5.5 करोड़ किताबें इस दौरान अन्य भाषाओं में ट्रांसलेट की। इन्होंने आध्यामिकता में ध्यान दिया न कि किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहित किया।अत्यंत कठिनाई भरे क़रीब एक वर्ष के बाद जुलाई, 1966 में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (‘इस्कॉन’ ISKCON) की स्थापना की। 

इनके कारण ही पाकिस्तान में 12 इस्कोन मंदिर है, आज भी इन मंदिरों में भगवत गीता पर कथा की जाती है। उनके शिष्यों ने अन्य जगहों पर भी ऐसे समुदायों की स्थापना की। 1972 में टेक्सस के डलास में गुरुकुल की स्थापना कर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की वैदिक प्रणाली का आरम्भ किया। 

14 नवंबर, 1977 ईं को ‘कृष्ण-बलराम मंदिर’, वृन्दावन धाम में अप्रकट होने के पूर्व तक श्री प्रभुपाल ने अपने कुशल मार्ग निर्देशन के कारण ‘इस्कॉन’ को विश्व भर में सौ से अधिक मंदिरों के रूप में विद्यालयों, मंदिरों, संस्थानों और कृषि समुदायों का वृहद संगठन बना दिया। आज विश्व भर में इस्कॉन के आठ सौ से ज्यादा केंद्र, मंदिर, गुरुकुल एवं अस्पताल आदि है।

सन 1966 से 1977 के बीच  लगभग 11 वर्षो में उन्होंने विश्व भर का 14 बार भ्रमण किया तथा कृष्णभावना के वैज्ञानिक आधार को स्थापित करने के लिए उन्होंने भक्तिवेदांत इंस्टिट्यूट की भी स्थापना की। यह अपने जीवन काम के मात्र 2 घंटे आराम करके 22 घंटे काम करते थे।

12 साल में इन्होंने विश्व के कई देशों मे 1 मंदिर से 108 मंदिर बनवा दिए, एवं जगन्नाथ की रथयात्रा भी विश्व भर मे इन्होंने ही शुरू की थी। फ़ूड फॉर लाइफ के नाम से भी इन्होंने फ्री खाना शुरू कराया, इस्कोन मंदिर में आज भी 14 लाख बच्चो को इस्कोन मंदिर खाना बनाकर देते हैं। आज के समय मे प्रचलित मिड डे मील भी इसी प्रक्रिया पर आधारित है।

निर्वाण Death

श्री प्रभुपाद जी का निधन 14 नवंबर, 1977 में प्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा के वृन्दावन धाम में हुआ। कहा जाता है कि जब यह मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए थे, तब भी यह गीता ज्ञान के उपदेश को रिकॉर्ड कर रहे थे।एकड़ो प्रॉपर्टी होने के बावजूद सारा पैसा उन्होने समाज पर न्यौछावर कर दिया। 

प्रेरक के रूप में Srila Prabhupada Quote

स्वामी जी ने कहा था –

मैं अकेला हूँ, और मैं सब कुछ नही कर सकता, 
इसका मतलब यह नही है, कि मैं कुछ भी नही कर सकता।
क्योंकि मैं कुछ कर सकता हूँ, तो कुछ करूँगा, और कुछ कुछ कर कर के कुछ भी कर दूँगा।

इन्होंने अकेले ही पूरे विश्व मे भगवत गीता के ज्ञान को पूरे जोश से फैलाया। अपने आप को कम न आंककर, ईश्वर द्वारा प्रदत्त प्रतिभाओं को उपयोग में लाकर अपने गुरु द्वारा दिये गए आदेश का पालन किया।

दोस्तों श्री भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद थे भारत के एक ऐसे स्वामी जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी हार नही मानी और लगातार प्रयास करके अपना एक कीर्ति मान कायम किया और पूरे विश्व मे अपने नाम और काम का डंका बजवाया।

Featured Image – Wikimedia
Source – Youtube
prabhupada.krishna.com

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