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अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास Ajmer Sharif Dargah History in Hindi

Moral Stories
8 Min Read
अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास Ajmer Sharif Dargah History in Hindi
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अजमेर शरीफ दरगाह (Ajmer Sharif Dargah in Hindi), दरगाह शरीफ,ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह अजमेर, अजमेर दरगाह जैसे नामों से जाना जाता है। यह राजस्थान का सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण मुस्लिम तीर्थ स्थान है। मक्का मदीना की तरह यह भी मुस्लिम धर्म के लिए इश्वर का दरवाज़ा है।

Contents
अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास Ajmer Sharif Dargah History in Hindiअजमेर दरगाह के प्रमुख स्मारक The Memorial of Ajmer Sharif Dargahनिजाम गेटबुलंद दरवाजाडीग्सचिरागशामखाना या महफिलखानाबेगमी दालानवहां स्थित कुछ और मुख्य स्थान हैं –अजमेर शरीफ में दैनिक समारोह Ajmer Sharif Daily Functionsख़िदमतप्रकाशकरकाईशा प्रार्थनासम (कव्वाली)अजमेर शरीफ में उर्स Celebration of Urs in Ajmer Sharifक्यूल दिवसदरगाह शरीफ में योगदान Contribution to Dargah Sharifअजमेर शरीफ दरगाह की यात्रा का सर्वोत्तम समय Best Season and Time to Visit Ajmer Sharif Dargah

यह भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए प्रसिद्ध है। सभी समुदायों के लोग यहां आते हैं और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह में सजदा करते  हैं। विभिन्न धर्म के विभिन्न अनुयायी दरगाह पर फूल, मखमली कपड़ा, इत्र और चंदन चढ़ाने के लिए दूर-दूर से यह पहुंचते हैं।

Featured Image Source – Flickr

अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास Ajmer Sharif Dargah History in Hindi

ख्वाजा गरीब नवाज़ दरगाह अजमेर, हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा है। जो भारत में इस्लाम के संस्थापक थे। वह दुनिया में इस्लाम के महान उपदेशक के रूप में थे। वह अपनी महान शिक्षाओं और शांति के प्रचारक रूप में जाने जाते हैं। यह सूफी संत परसिया से आये थे। अजमेर में सभी के दिलों को जीतने के बाद सन 1236 में उनका निधन हो गया। यह सूफी संत ख्वाजा गरीब के नाम से भी जाने जाते थे।

बाद में यहां मुग़ल सम्राट हुमायूं, अकबर, शाहजहां और जहांगीर ने मस्जिद निर्माण किया। मुख्य मकबरा निजाम गेट के नाम से जाना जाता है, जो कि शाहजहाँ के द्वारा बनवाया गया था। इसलिए यह गेट, शाहजहाँ गेट के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद बुलंद दरवाज़ा है। जिस पर उर्स का ध्वज फहराकर, उर्स त्यौहार की शुरुआत की जाती है।

अजमेर दरगाह के प्रमुख स्मारक The Memorial of Ajmer Sharif Dargah

अजमेर शरीफ दरगाह का दौरा करते समय आपको विभिन्न स्मारक उल्लेखनीय इमारतें मिलेंगी। इन सभी इमारतों का निर्माण भारत के विभिन्न शासकों के द्वारा करवाया गया है। यह  बहुत पवित्र माना जाता है निजाम गेट के द्वारा अजमेर दरगाह में प्रवेश किया जाता है।

उसके बाद शाहजहानी गेट है जिसका निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने करवाया था। इसके बाद बुलंद दरवाज़ा है, जो कि महमूद खिलजी द्वारा बनवाया गया था।

अजमेर शरीफ के दरगाह में जाने के दौरान पाए जाने वाले स्मारक –

निजाम गेट

यह 1911 में हैदराबाद डेक्कन के मीर उस्मान अली खान द्वारा बनाया गया था।

बुलंद दरवाजा

यह महमूद खिलजी और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा निर्मित एक विशाल द्वार है। उर्स महोत्सव की शुरुआत से पहले इस द्वार के ऊपर ध्वज फहराया जाता है।

डीग्स

ऐतिहासिक समय में खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक विशाल बर्तन है । जो सहम के सामने स्थित दूसरे बुलंद दरवाजा के किनारे पर स्थित है।

चिराग

चिराग एक बड़ी कड़ाही है। जिसकी  किनारे की परिधि 10-1/ 4 फुट है। इसमें 70 पौंड चावल पकाए जा सकते हैं। जबकि छोटे डीग 28 पाउंड लेता है। उनमें से एक 1567 ए.डी. में अकबर द्वारा बनवाया गया था।

शामखाना या महफिलखाना

यह एक स्थान है जहां आप दिल छू लेने वाली कव्वाली का अद्भुद आनंद ले सकते हैं यह सहम चिराग के पश्चिमी तरफ स्थित है। वह स्थान जहां कव्वाली का आयोजन किया जाता है, नवाब बशीर-उद-डोवा सर असमान जहाँ के द्वारा बनवाया गया था।

बेगमी दालान

मुख्य मंदिर के पूर्वी हिस्से में स्थित एक छोटी और सुन्दर दालान है। जिसे बेगमी दालान कहते हैं। यह दालान सम्राट शाहजहाँ की बेटी राजकुमारी जहान आरा बेगम द्वारा बनाई गई थी।

वहां स्थित कुछ और मुख्य स्थान हैं –
  1. सनडली मस्जिद
  2. बीबी हाफिज जमाल के मजार
  3. ऑलिया मस्जिद
  4. बाबाफिरिद का चिली
  5. जन्नती दरवाजा
  6. अकबरी मस्जिद

अजमेर शरीफ में दैनिक समारोह Ajmer Sharif Daily Functions

ख़िदमत

यह अनुष्ठान है जिसमें मजार की सफाई की जाती है खिदमत दिन में दो बार की जाती है। एक सुबह 4 बजे अज़ान के वक्त पर दूसरी 3 बजे शाम को। सुबह की खिदमत फजर प्रार्थना के आधे घंटे पहले होती है।

शाम खिदमत केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है देवियों को खिदमत की अनुमति नहीं है फूलों और चन्दन के साथ खादिम द्वारा फतह पढ़ी जाती है।

प्रकाश

खादिम मकबरे के अन्दर मोमबत्तियां जलाते है। ढोल बजाते हैं चारों कोनो में लैंप प्रज्वालित करते  हैं और पवित्र शब्दों का उच्चारण करते हैं।

करका

यह कब्र का समापन समारोह है यह एक घंटे के बाद होता है।

ईशा प्रार्थना

यह प्रार्थना दरवाज़ा बंद होने के बीस मिनट पहले होती है। रात के पांचवे पहर में जब घंटा पांच बार बजता  है। तीन खादिम मकबरे को साफ़ करते हैं। जैसे ही छटवीं बार घंटा बजता है। कव्वाल विशेष करका गीत गाते हैं और दरवाज़ा बंद हो जाता है।

सम (कव्वाली)

यह अल्लाह की प्रशंसा में गीत है जिसे कव्वाल द्वारा मजार के सामने गाया जाता है जो कि महफिल-ए-सम में भक्ति गायक हैं  इसके बाद नवाज़ ख़त्म होती है इसके अलावा हर दिन कुरान का आयोजन होता है।

अजमेर शरीफ में उर्स Celebration of Urs in Ajmer Sharif

उर्स का वार्षिक त्यौहार बुलंद दरवाजा पर ध्वज फहराने से शुरू होता है। उर्स का त्यौहार रजब के महीने में चांद दिखाई देने के बाद  शुरू होता है उसके साथ उर्स त्योहार की शुरुआत, दरगाह के दैनिक अनुसूची में परिवर्तन आ जाता है।

पवित्र कब्र के मुख्य प्रवेश द्वार जो रात को बंद किया जाता था अब सभी के लिए खुला है रात में 2 या 3 घंटे को छोड़कर दिन और रात। उर्स त्यौहार का प्रारंभ होते ही दरगाह की दैनिक अनुसूची में परिवर्तन हो जाता है। मुख्य द्वार जो रात को बंद किया जाता था वह दिन रात खोला जाता है।

क्यूल दिवस

यह उर्स त्यौहार का अंतिम दिन है जो त्योहार के छठे दिन होता  है। यह इस त्योहार सबसे महत्वपूर्ण दिन है और सुबह प्रार्थना के बाद भक्त पवित्र कब्र के पास इकठ्ठा होना शुरू करते हैं।

उसके बाद कुरान का एक गायन, शिजरा-ए-चिश्ती और अन्य छंद गाये जाते हैं । भक्त भी  एक दुसरे को छोटी पगड़ी बांधते हैं और शांति ख़ुशी और सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करते हैं।

दरगाह शरीफ में योगदान Contribution to Dargah Sharif

भक्त दरगाह शरीफ में चादर फूल इत्र की पेश कश कर सकते हैं। ट्रस्ट को दरगाह के रख-रखाव और भोजन के लिए पैसे भी दान दे सकते हैं।

दरगाह में लोग चादर चढाते हैं। ज्यादात्तर लोग मखमल की चादर की पेशकश करते हैं। दरगाह में भक्तों के लिए जो भोजन बनता है आप उसके लिए पैसे और खाने का सामान भी दान दे सकते हैं।

अजमेर शरीफ दरगाह की यात्रा का सर्वोत्तम समय Best Season and Time to Visit Ajmer Sharif Dargah

उर्स का त्यौहार अजमेर शरीफ दरगाह की यात्रा के लिए सर्वोत्तम समय हैं। उर्स के दौरान यह पवित्र स्थान रात दिन खुला रहता है। माना जाता है उर्स के दौरान अजमेर खुद व खुद एक पवित्र स्थान बन जाता है। उर्स के दौरान दरगाह का मुख्य द्वार जन्नती द्वार कहलाता है। जो आमतौर पर बंद रहता है उर्स के दौरान उसे सभी उसे जन्नती दरवाज़ा कहते हैं।

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